मिल कर भी जो नहीं मिली आज़ादी देखो
पीले चेहरों की तस्वीर गुलाबी देखो
बदले चेहरे पर ढर्रा कोई ना बदला
दूल्हा बदले , बदले णा बाराती देखो
रोज आंकड़े चमकाते तस्वीर मुल्क की
मगर आंकड़ों के साये बदहाली देखो
उत्सव नया एक राजधानी में होगा
बढ़ जायेगी हम पर मगर उधारी देखो
खेल खेल कर थके हुए मोहरों की किस्मत
इक डब्बे में प्यादे ,राजा ,रानी देखो
आसमान में चाहे कितना घटाटोप हो
तल्ख़ हवाओं की लेकिन तैय्यारी देखो
Wednesday, November 30, 2011
Friday, November 25, 2011
बच्चे बड़े हो गए हैं
बच्चे नहीं खेलते
गिल्ली-डंडा ,लुका-छिपी
सतोलिया, मारदड़ा
नहीं दिखते
भागते दौड़ते
कूदते फांदते
रोते झींकते
गाते गुनगुनाते
गलियों में
बच्चे घरों में हैं
माँ बाप की
चौकस निगाहों के साये में
पढ़ रहे हैं
कम्पूटर के चूहे से खेल रहे हैं
समझदार हो रहे हैं
भविष्य बना रहे हैं
बच्चों के पास किताबें हैं
गेजेट्स हैं
मोबाइल है
समझ है
बचपन नहीं है
नहीं जानते
रेत के घर बनाना
काली कुतिया के पिल्लों की गिनती
मुंडेरों और डाल से गिर कर
नहीं छिलाते घुटने
पतंग ,कंचे ,माचिस की डिब्बी के
खजाने नहीं हैं उन के पास
नहीं जानते
कैसे घिसटा ले जाता है
गाय का नवजात बछड़ा
पेड़ जंगल नदी बारिश
किसी को महसूस नहीं किया
फिर भी सब कुछ जानते हैं बच्चे
टीवी इन्टरनेट से
ज्ञानी हुए बच्चे
सब कुछ जानते हैं
आश्चर्य नहीं होता उन्हें
किसी बात पर
आश्चर्य और उत्सुकता
गढते हैं जीवन
बच्चे पढते हैं जीवन
समझदार बच्चे
पर्यावरण पर भाषण देंगे
वातानुकूलित कक्ष में
नीम और पीपल में
फर्क जाने बिना
गिल्ली-डंडा ,लुका-छिपी
सतोलिया, मारदड़ा
नहीं दिखते
भागते दौड़ते
कूदते फांदते
रोते झींकते
गाते गुनगुनाते
गलियों में
बच्चे घरों में हैं
माँ बाप की
चौकस निगाहों के साये में
पढ़ रहे हैं
कम्पूटर के चूहे से खेल रहे हैं
समझदार हो रहे हैं
भविष्य बना रहे हैं
बच्चों के पास किताबें हैं
गेजेट्स हैं
मोबाइल है
समझ है
बचपन नहीं है
नहीं जानते
रेत के घर बनाना
काली कुतिया के पिल्लों की गिनती
मुंडेरों और डाल से गिर कर
नहीं छिलाते घुटने
पतंग ,कंचे ,माचिस की डिब्बी के
खजाने नहीं हैं उन के पास
नहीं जानते
कैसे घिसटा ले जाता है
गाय का नवजात बछड़ा
पेड़ जंगल नदी बारिश
किसी को महसूस नहीं किया
फिर भी सब कुछ जानते हैं बच्चे
टीवी इन्टरनेट से
ज्ञानी हुए बच्चे
सब कुछ जानते हैं
आश्चर्य नहीं होता उन्हें
किसी बात पर
आश्चर्य और उत्सुकता
गढते हैं जीवन
बच्चे पढते हैं जीवन
समझदार बच्चे
पर्यावरण पर भाषण देंगे
वातानुकूलित कक्ष में
नीम और पीपल में
फर्क जाने बिना
Tuesday, November 22, 2011
कस्बे का कोलाज .....छुटभैये नेता रामधन जी
एक
विधायक
सिर्फ 'जीतता' है
'बनता' है
जब
रामधन जी
'बनाते' हैं
दो
कुत्ता ,सांप , बगुला
गिरगिट ,लोमड़ी
सब को मिला कर
रामधनिया
बन जाता है
रामधन जी
तीन
सभी सरकारी योजना
गुजरती हैं
रामधन जी कि छलनी से
छोड़ जाती हैं
कुछ न कुछ
चार
रामधन जी को
अहसान करना
जताना
और भुनाना आता है
पांच
रामधन जी जानते हैं
सरकारी कारिंदों कि
नब्ज़ ,जरूरत ,औकात
देते है
चपत , प्यार और लात
विधायक
सिर्फ 'जीतता' है
'बनता' है
जब
रामधन जी
'बनाते' हैं
दो
कुत्ता ,सांप , बगुला
गिरगिट ,लोमड़ी
सब को मिला कर
रामधनिया
बन जाता है
रामधन जी
तीन
सभी सरकारी योजना
गुजरती हैं
रामधन जी कि छलनी से
छोड़ जाती हैं
कुछ न कुछ
चार
रामधन जी को
अहसान करना
जताना
और भुनाना आता है
पांच
रामधन जी जानते हैं
सरकारी कारिंदों कि
नब्ज़ ,जरूरत ,औकात
देते है
चपत , प्यार और लात
Friday, November 18, 2011
गज़ल
आँख से काजल चुराना ,खेल है
लब्ज़ का जादू दिखाना ,खेल है
हाथ में कासा औ थैली पीठ पर
रोज यूँ फेरी लगाना ,खेल है
कल जिसे फेंका था कूड़ेदान में
आज फिर से सर चढाना ,खेल है
मौत जिस घर में जवां हो कर चुकी
उस जगह जाजम ज़माना ,खेल है
लग रही ज़म्हूरियत उम्मीद से
वाह ज़न्खो की ज़नाना, खेल है
वक्त के जो कल ठिकानेदार थे
आज खुद ढूंढें ठिकाना ,खेल है
हर गली के मोड पर भैरों ,शनि
कब पड़े किस को मनाना,खेल है
खूब ये बेबाक लहजा बात का
बात बिन बातें बनाना ,खेल है
लब्ज़ का जादू दिखाना ,खेल है
हाथ में कासा औ थैली पीठ पर
रोज यूँ फेरी लगाना ,खेल है
कल जिसे फेंका था कूड़ेदान में
आज फिर से सर चढाना ,खेल है
मौत जिस घर में जवां हो कर चुकी
उस जगह जाजम ज़माना ,खेल है
लग रही ज़म्हूरियत उम्मीद से
वाह ज़न्खो की ज़नाना, खेल है
वक्त के जो कल ठिकानेदार थे
आज खुद ढूंढें ठिकाना ,खेल है
हर गली के मोड पर भैरों ,शनि
कब पड़े किस को मनाना,खेल है
खूब ये बेबाक लहजा बात का
बात बिन बातें बनाना ,खेल है
Wednesday, November 16, 2011
एक गज़ल
जो जुबां ने कहा सब जुबानी हुआ
अश्क दिल कि मगर तर्जुमानी हुआ
खूब गरजा,मगर, फिर भी बादल रहा
जब बरसने लगा,तब ही पानी हुआ
दिन में जो कि पसीने में महका बहुत
रात में जिस्म वो रात रानी हुआ
लाख चाहत के किस्से सुनाते रहे
लब्ज़ तेरा,मगर,इक कहानी हुआ
गो किया था ज़मीं पर ज़मीं के लिए
उन का दावा मगर आसमानी हुआ
जब गिनाने लगे वो गिनाते रहे
सांस का सिलसिला महरबानी हुआ
कागजों में ज़मींदार मालिक रहा
एक कतरा पसीना किसानी हुआ
अश्क दिल कि मगर तर्जुमानी हुआ
खूब गरजा,मगर, फिर भी बादल रहा
जब बरसने लगा,तब ही पानी हुआ
दिन में जो कि पसीने में महका बहुत
रात में जिस्म वो रात रानी हुआ
लाख चाहत के किस्से सुनाते रहे
लब्ज़ तेरा,मगर,इक कहानी हुआ
गो किया था ज़मीं पर ज़मीं के लिए
उन का दावा मगर आसमानी हुआ
जब गिनाने लगे वो गिनाते रहे
सांस का सिलसिला महरबानी हुआ
कागजों में ज़मींदार मालिक रहा
एक कतरा पसीना किसानी हुआ
Tuesday, November 15, 2011
कस्बे में सुबह
भोर का तारा
रोज ऐलान करता है
लेकिन नहीं होती कस्बे में
भोर सी भोर
मुरझाया सा सूरज
रोज आ बैठता है
ड्यूटी पर
ऊबे नगरपालिका के बाबू सा
कड़काता है ऊँगलियाँ
सूरज को आना ही है
इसलिए आ जाता है
रोजाना
बिखर जाता है
थोडा थोडा
मंदिर के कलश पर
मस्जिद की मीनार पर
गली गली
आँगन आँगन
खटका देता है
कुछ कुंडियां
जगा देता है
छतों पर
ऊबे अकड़ाये से पड़े
कुछ नर मादा शरीरों को
झाड़ू को हिला देता है
बर्तनों को खनका देता है
बूढ़े मुंह में रख देता है
राम का नाम
बच्चों को पकड़ा देता है
माँ का स्तन
लेकिन नहीं पीता
एक प्याला चाय
किसी के भी साथ बैठ कर
नहीं करता
किसी को भी गुदगुदी
समझदार सूरज
चुपचाप पकड़ा देता है
तमाखू का मंजन
बीडी,खैनी ,चिलम
औरतों बच्चों की चिल्ल पों
मंदिर की आरती
मस्जिद की अजान
दूधियों की बाइक की गुर्राहट
सारी आवाजें एक साथ
गड्ड मड्ड सुनता सूरज
जा बैठता है
बाजार के बीच वाले
पीपल गट्टे पर
टुकुर टुकुर ताकता है
धीरे धीरे खुलती दुकानें
चाय पानी ,पान ,किराना
कपडे, जूते,मनिहारी का सामान
सूरज को पता है
कुछ इंसान आज भी
देंगे उस को अर्ध्य
कोई कोई
कर रहा होगा
सूर्य नमस्कार
सब का धन्यवाद कर
ऊबा सा सूर्स्ज
मिलेगा नुझे
गली के
किसी भी मोड पर
पूछेगा मुझ से
अपने दिनकर ,दिवाकर जैसे
नामों के अर्थ
मैं कहूँगा
सूरज
अगर तुम
जगाना ही चाहते हो
इस उनींदे कस्बे को
अगर वास्तव में चाहते हो
दिन करना
तो सीखना होगा तुम्हे
उदय होने का सलीका
रोज ऐलान करता है
लेकिन नहीं होती कस्बे में
भोर सी भोर
मुरझाया सा सूरज
रोज आ बैठता है
ड्यूटी पर
ऊबे नगरपालिका के बाबू सा
कड़काता है ऊँगलियाँ
सूरज को आना ही है
इसलिए आ जाता है
रोजाना
बिखर जाता है
थोडा थोडा
मंदिर के कलश पर
मस्जिद की मीनार पर
गली गली
आँगन आँगन
खटका देता है
कुछ कुंडियां
जगा देता है
छतों पर
ऊबे अकड़ाये से पड़े
कुछ नर मादा शरीरों को
झाड़ू को हिला देता है
बर्तनों को खनका देता है
बूढ़े मुंह में रख देता है
राम का नाम
बच्चों को पकड़ा देता है
माँ का स्तन
लेकिन नहीं पीता
एक प्याला चाय
किसी के भी साथ बैठ कर
नहीं करता
किसी को भी गुदगुदी
समझदार सूरज
चुपचाप पकड़ा देता है
तमाखू का मंजन
बीडी,खैनी ,चिलम
औरतों बच्चों की चिल्ल पों
मंदिर की आरती
मस्जिद की अजान
दूधियों की बाइक की गुर्राहट
सारी आवाजें एक साथ
गड्ड मड्ड सुनता सूरज
जा बैठता है
बाजार के बीच वाले
पीपल गट्टे पर
टुकुर टुकुर ताकता है
धीरे धीरे खुलती दुकानें
चाय पानी ,पान ,किराना
कपडे, जूते,मनिहारी का सामान
सूरज को पता है
कुछ इंसान आज भी
देंगे उस को अर्ध्य
कोई कोई
कर रहा होगा
सूर्य नमस्कार
सब का धन्यवाद कर
ऊबा सा सूर्स्ज
मिलेगा नुझे
गली के
किसी भी मोड पर
पूछेगा मुझ से
अपने दिनकर ,दिवाकर जैसे
नामों के अर्थ
मैं कहूँगा
सूरज
अगर तुम
जगाना ही चाहते हो
इस उनींदे कस्बे को
अगर वास्तव में चाहते हो
दिन करना
तो सीखना होगा तुम्हे
उदय होने का सलीका
Saturday, November 12, 2011
शंकरी ताई
एक
शंकरी ताई पर
ऊंगली उठाने वाले
सामने पड़ने पर
आँख भी नहीं उठा पाते
दो
अधेड़ शराबी ताऊ की
जवान आग सी पत्नी
शंकरी ताई
लगाती है आग
पूरे कस्बे के सीने में
तीन
बेर ,खरबूजा
आम, अमरुद
काकडिया,तुम्बे की
मिली जुली खुशबू से
भी तेज
शंकरी ताई की खुशबू से
खींचे चले जाते हैं बच्चे
सख्त मनाही के बावजूद
शंकरी ताई पर
ऊंगली उठाने वाले
सामने पड़ने पर
आँख भी नहीं उठा पाते
दो
अधेड़ शराबी ताऊ की
जवान आग सी पत्नी
शंकरी ताई
लगाती है आग
पूरे कस्बे के सीने में
तीन
बेर ,खरबूजा
आम, अमरुद
काकडिया,तुम्बे की
मिली जुली खुशबू से
भी तेज
शंकरी ताई की खुशबू से
खींचे चले जाते हैं बच्चे
सख्त मनाही के बावजूद
Thursday, November 10, 2011
क़स्बा सांप है
क़स्बा
सांप सा रेंगता रहता है
फन उठाता है तभी
जब दब जाए
उस की अनेक पूंछों में से
कोई एक
हुनरमंद लोग
अपनी बीन पिटारा लिए
ताक में रहते हैं
इरादतन दबाते हैं पूँछ
निकाल लेते हैं जहर
आवश्यकतानुसार
क़स्बा
फिर रेंगने लगता है
सांप हो कर भी
सांप सा नहीं काट पाया
क़स्बा कभी भी
बस जहर पैदा करता रहा
हुनरमंदों के लिए
सांप सा रेंगता रहता है
फन उठाता है तभी
जब दब जाए
उस की अनेक पूंछों में से
कोई एक
हुनरमंद लोग
अपनी बीन पिटारा लिए
ताक में रहते हैं
इरादतन दबाते हैं पूँछ
निकाल लेते हैं जहर
आवश्यकतानुसार
क़स्बा
फिर रेंगने लगता है
सांप हो कर भी
सांप सा नहीं काट पाया
क़स्बा कभी भी
बस जहर पैदा करता रहा
हुनरमंदों के लिए
Tuesday, November 8, 2011
कस्बे का कोलाज
एक
क़स्बा
न गाँव रह पाया
न शहर हो पाया
जब भी हिकारत से देखा
कस्बे ने
गाँव को
शहर कि ओर से आई आंधी ने
भर दी रेत
आँख और मुंह में
दो
तिलिस्मी कस्बे में
कैसे भी बना लो
घर की दीवार
पारदर्शी हो जाती है
तीन
जनगणना वाले
कस्बे में
सर तो गिन लेते हैं
- खाने वाले
हाथ कहाँ गिनते हैं
- कमाने वाले
चार
दोस्त की बहन
और बहन की सहेलियां
बहन ही होती थी
कल तक तो
पांच
बल्लू को पता है
काली कुतिया ने
कितने पिल्ले दिए
कहाँ है कीड़ी-नगरा
कबूतरी ने अंडे कहाँ दिए
कोचरी रात को
कौन सी जांटी पर बोलती है
कुत्ते रात को
क्यों रोते हैं
पर मोहल्ले के छोरे
नहीं सुनते उस की बात
कहते हैं
बल्लू बावला
क़स्बा
न गाँव रह पाया
न शहर हो पाया
जब भी हिकारत से देखा
कस्बे ने
गाँव को
शहर कि ओर से आई आंधी ने
भर दी रेत
आँख और मुंह में
दो
तिलिस्मी कस्बे में
कैसे भी बना लो
घर की दीवार
पारदर्शी हो जाती है
तीन
जनगणना वाले
कस्बे में
सर तो गिन लेते हैं
- खाने वाले
हाथ कहाँ गिनते हैं
- कमाने वाले
चार
दोस्त की बहन
और बहन की सहेलियां
बहन ही होती थी
कल तक तो
पांच
बल्लू को पता है
काली कुतिया ने
कितने पिल्ले दिए
कहाँ है कीड़ी-नगरा
कबूतरी ने अंडे कहाँ दिए
कोचरी रात को
कौन सी जांटी पर बोलती है
कुत्ते रात को
क्यों रोते हैं
पर मोहल्ले के छोरे
नहीं सुनते उस की बात
कहते हैं
बल्लू बावला
कुछ तो है जो बदला है
माँ बनाती थी रोटी
पहली गाय की
आखरी कुत्ते की
एक बामणी दादी की
एक मेहतरानी की
अलस्सुबह
सांड आ जाता
दरवाज़े पर
गुड की डली के लिए
कबूतर का चुग्गा
कीड़ीयों का आटा
ग्यारस,अमावस,पूनम का सीधा
डाकौत का तेल
काली कुतिया के ब्याने पर
तेल गुड का हलवा
सब कुछ निकल आता था
उस घर से
जिस में विलासिता के नाम पर
एक टेबल पंखा था
आज सामान से भरे घर से
कुछ भी नहीं निकलता
सिवाय कर्कश आवाजों के
पहली गाय की
आखरी कुत्ते की
एक बामणी दादी की
एक मेहतरानी की
अलस्सुबह
सांड आ जाता
दरवाज़े पर
गुड की डली के लिए
कबूतर का चुग्गा
कीड़ीयों का आटा
ग्यारस,अमावस,पूनम का सीधा
डाकौत का तेल
काली कुतिया के ब्याने पर
तेल गुड का हलवा
सब कुछ निकल आता था
उस घर से
जिस में विलासिता के नाम पर
एक टेबल पंखा था
आज सामान से भरे घर से
कुछ भी नहीं निकलता
सिवाय कर्कश आवाजों के
Subscribe to:
Posts (Atom)