Wednesday, May 30, 2012

boond ka sapna


लाल गलीचा
चलो बिछाएं
हरी दूब पर

खत आया है
खत जो
निश्चित कर देगा
मेरा कद बूता
दुनिया के मेले मे
क्या कीमत है मेरी
निश्चित कर देगा चौखट
सर जहां झुकाना

पूरे घर मे
कई पटाखे फूट रहे हैं
माँ कहती है
अब आई है जान
बुढ़ापे की लाठी मे
बाबा ने
इक सांस भरी है
ले अंगडाई

मेरे सपनों के आंसू
टपके टपके हैं
कितनी लहरें
पटक रही सर
चट्टानों पर
इस समुद्र मे
बूँद कोई
आये या जाये
हहराता ही रहे
सदा ये
बूंदों का सपना भी
क्या सपना होता है

Monday, May 28, 2012

सुन कमली

सुन कमली 
मैं भी चिंतित हूँ 
मैं ही क्या 
टोली की टोली 
पिली हुई है 
ढूंढ रही है 
क्या होते हैं 
लोग-लुगाई 


छील रहा हूँ 
प्याज के छिलके 
प्याज छीलते 
आये आंसू 
ये लिख दूंगा 


बढे हुए नाखूनों को 
काटूँगा थोडा 
जिंदा नाखूनों का कटना 
दर्दनाक है 
ये लिख दूंगा 


खुजली सर मे ही क्या 
पूरा बदन खुजा कर 
छील ही लूँगा 
शायद खून छलक आयेगा 
खून लिखूंगा 
मेरी खुजली मिट जायेगी 


कमली सुन 
ये हरी लूगड़ी
एक घाघरा छींट दार भी 
देना मुझ को 
देख इसे मैं 
कैसे परचम बनवाता हूँ 
हरी लूगड़ी ब्रांड बनेगी 
तुझे सुच्चिकन पन्नों वाली 
मेगजीन के 
मुख पर 
छपवाऊंगा इक दिन 
मेरा कद 
कुछ बढ़ जायेगा 


सुन कमली 
मैं फिर आऊंगा 
तुझ से मिलने 
मुझे पता 
तू वहीँ मिलेगी 
फटी लूगड़ी मे 
टांका लगवाती होगी 

Friday, May 25, 2012

shabd -yaatra


शब्द खोखले 
शब्द लिजलिजे 
शब्द गुनगुने 
शब्द अनमने 
करें शब्द को तार-तार अब 
पूछें,अर्थ कहाँ छोड़ा है 
वही अर्थ 
सीधा सादा सा 
हाथ पकड़ ले 
साथ टहल ले 
पीठ खुजा दे 
करे गुदगुदी 
चाहे घाव हरे कर दे,पर 
वार केरे तो सीधा मारे 

शब्द गुलगुले से मीठे हों 
मंतव्यों की लिए श्रृंखला
निहित कहीं कुछ
गूढ़ बहुत सा
कई झरोखे 
 महराबें कुछ 
कपट-द्वार भी 
बहुत कंगूरे 
दूर दूर तक
खुदी सुरंगे
ऊबड़ खाबड़ से 
रस्ते कुछ 

तत्सम,तद्भव 
ढूँढें उद्भव 
शब्द नहीं जब 
शब्द स्वयं ही 
स्खलित अर्थ का 
अर्थ भला क्या 

शब्द अगर
बेजान हुए हैं
शायद पौरुष भी
बीता  है
कहीं कोख मे
सूनापन है
ममता का
आँचल रीता है  




Monday, May 14, 2012

bonsaai

गमलों मे 
कब पेड़ पनपता 
कोई बोनसाई ही होगा 
पेड़ नहीं 
तदरूप और विद्रूप 
भले हो 
बौनी ताकत
छाया,फल कब दे पाएगी 
किसी बेल को 
कहाँ सहारा मिल पायेगा
कहाँ बसेरा ले पायेगा
कोई पखेरू
प्राण-वायु मुट्ठी भर भी
जो दे ना पाए
क्या करना है
इन पेड़ों का
जीवन का स्पंदन धडके
ऐसे पेड़ों को
गमलों से आजाद करें अब
नहीं चाहिए
ड्राइंग रूम की शोभा केवल
कई ज़मीनी बातें
अब जीनी ही होंगी
गमले टूटेंगे
तो ही
पनपेंगे पक्का
कुछ विशाल वट वृक्ष
वही आश्वस्त करेंगे

Friday, May 4, 2012

sapna

गदबदे बच्चे सा वो 
अनमोल सपना 
रात मेरी गोद बैठा 
फिर पकड़ उंगली मेरी 
डग भर चला था

एक ललछौंही ललक सा
फिर लपक कर
डाल कर मेरे गले
छोटी सी बाँहें
देर तक लिपटा रहा
आश्वस्त करता
फुसफुसाया फिर
मैं हिस्सा हूँ तुम्हारा
इक महक बन
रम गया हूँ
बीज हूँ मैं
ढूंढ भूमि उर्वरा अब
मैं फलूँगा

इक इबारत हूँ
मुझे लिख
आसमां पर
मैं बरस जाऊँगा इक दिन
गा उठेगी
ये धरा भी
पाल मुझ को

थपकियाँ दे
मत सुला
जागा रहा तो
जिंदगी के अर्थ
तुझ पर खोल दूंगा

मैं हूँ कुंजी
हूँ इशारा
साथ ले मुझ को
चला चल
बंद दरवाज़ों के
पीछे क्या
तुझे बतला सकूंगा

Thursday, May 3, 2012

सुन गोविंदा

सुन गोविंदा 
भिखमंगों की इस टोली को 
कैसे तू संतुष्ट करेगा 
कैसे सिद्ध करेगा 
दाता इक तू ही है 
ऐसे वैसे 
कैसे कैसे 
जैसे तैसे 
सभी डटे हैं 
मांग पत्र की फोटोकॉपी 
सब हाथों में 

तुझे समर्पित 
पत्र पुष्प ये 
पान ,इत्र के फाहे 
तुलसी,गंगाजल ये 
झांकी ये छप्पन भोगों की 
एक लिसलिसी लार सने हैं 

कौन आया है 
तुझ से मिलने 
सब तुझ को 
केसिनो समझें 
दांव लगाते 
एक लगा कर 
शायद लाख बना पाएंगे 

नहीं चाहता बनूँ 
भीड़ का हिस्सा 
फिर भी 
मन पापी है 
चोरी चोरी 
देख रहा 
छप्पन भोगों को 

सच्चा है 
आँखों का खारा पानी 
फिर भी 
लाओ इन से 
चरण पखारूँ