रोज उगे पूरब से इक घसियारा दिन
डूब मरे पश्चिम में फिर बेचारा दिन
अटक गया उग कर बस जिस की साँसों में
लाख जतन कर उस ने पार उतारा दिन
नक़द ज़िन्दगी पल भर जी कर मैं देखूं
काश कहीं से मिलता एक उधारा दिन
छत पर जाने कितना चुग्गा डाल चुके
उड़ कर वापिस कब लौटा दोबारा दिन
आज नहीं तो कल होगा निश्चित जानो
किरण किरण इक बिखरेगा उजियारा दिन