Wednesday, April 13, 2011

अहसान है

हादिसों का चार सू इमकान है
लोग महफ़िल के मगर अनजान है

तोड़ देते आदमी की रूह को
ये ग़ज़ब के सिरफिरे अरमान है

क्या तआर्रुफ़ पूछते है बारहा
आप जैसे हूबहू इंसान है

उन फरिश्तों की अलग तासीर थी
इन फरिश्तों का अलग ईमान है

चाँद से जब से हुई है दोस्ती
चाँदनी मेरे यहाँ मेहमान है

खासियत तो देखिये पापोश की
हर क़दम की रूह की पहचान है

राह भूला भी नहीं,भटका नहीं
बस मेरा खुद पर यही अहसान है

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