Sunday, July 17, 2011

baarishen

मौज आई ,खूब आई बारिशें
ऊपरी जैसे कमाई बारिशें

सुन रहे हर बार कुछ बदलाव है
पर वही देखी दिखाई बारिशें

एक सहरा लाख चिल्लाता रहा
गर न आई ,तो न आई बारिशें

वो समन्दर झेलता तूफ़ान अब
जिस समन्दर ने बनाई बारिशें

हम पकड़ दामन हया का रह गये
देर तक लेकिन नहाई बारिशें

इक तरफ हैं बाढ़,है सूखा कहीं
जान दे कर यूँ निभाई बारिशें

आसमां आयोग अब बैठायेगा
दायरों में क्यूँ समाई बारिशें

Monday, July 4, 2011

मेरे प्रकाशनाधीन संग्रह से

है ये एलाँ ज़रूरी सुनो साहिबो
वो जो दीवार पर है पढ़ो साहिबो

ये जो फाइल है कागज का टुकड़ा नहीं
आदमी की है किस्मत गढो साहिबो

हक मिले आप को ये गिला तो नहीं
फ़र्ज़ को भी अदा तो करो साहिबो

जानवर भी भरे पेट खाता नहीं
अब सलीके से तुम भी चरो साहिबो

फोड दे आँख तिनका भी गर जा गिरे
इन हवाओं के रुख से डरो साहिबो

हुक्म आका का तो तुम बजाते ही हो
एक दिन अपने दिल की सुनो साहिबो

वो जो परचम बना आखरी आदमी
आदमी ही रहे दम भरो साहिबो

ये सुनहरी कलम,मार दे,छोड़ दे
साथ किस के हो अब तो चुनो साहिबो

वक्त की ये नदी अब न यूँ ही बहे
दस्तखत इस पे कोई जड़ो साहिबो