Saturday, April 30, 2011

जादू टोना जी

सच को कैसे ढोना जी
चुभता कोना कोना जी

खाना-पीना,जगना-सोना
ये होना क्या होना जी

धुंआ,धुंआ अहसासों पलना
कतरा कतरा खोना जी

समय समय पर आना जाना
किस का रोना धोना जी

आसमान में इक उड़ान हो
क्या पाना क्या खोना जी

जीना नागफणी का जंगल
सपनों को क्या बोना जी

जागें तो जीवन पर सोचें
सोना है तो सोना जी

आँख मूँद कर देखेंगे तो
जीवन सपन सलोना जी

एक मदारी सभी जमूरे
जीवन जादू-टोना जी

Thursday, April 28, 2011

दोस्ती मिलती नहीं

दोस्तों की यूँ कमी खलती नहीं
दोस्ती लेकिन कहीं मिलती नहीं

मैं बड़ा या तू बड़ा आ नाप लें
दोस्ती में ये अदा चलती नहीं

बेसबब बैठक औ बहसें शाम की
शाम वैसी यार अब ढलती नहीं

एक हो पर दर हकीक़त यार हो
ज़िन्दगी फिर बोझ सी लगती नहीं

छीन कर खा जाएँ लड्डू गोंद का
हूक सी दिल में कहीं उठती नहीं

रात भर झगड़े, सुबह ढूँढा किये
बेकली अब इस क़दर पलती नहीं

मैं तेरा कर दूँ,तू मेरा काम कर
ये ज़रुरत दोस्ती बनती नहीं

Tuesday, April 26, 2011

पाली रेत

तुम ने कभी संभाली रेत
हम ने तो है पाली रेत

तन पर क्या रखना इस का
मन में कहीं छिपा ली रेत

होली रोज मनाती है
कभी कभी दीवाली रेत

सूरज संग अंगारा है
चंदा संग मतवाली रेत

जाने कहाँ छुपी बैठी
निकली नहीं निकाली रेत

कभी आसमां छू आती
कभी निठल्ली ठाली रेत

छू कर,जी कर,निरख,परख
अपनी देखीभाली रेत

Sunday, April 24, 2011

रेत आषाढ़ में

आषाढ़ में या सावन में
जब भी उठेगी तीतरपंखी बादली
चलेगी पुरवाई
थकने लगी होगी पगलाई डोलती रेत
तब
अनंत के आशीष सी
माँ के दुलार सी
कुंआरे प्यार सी
पड़ेगी पहली बूँद
रेत पी जायेगी उसे चुपचाप
बिना किसी को बताये
बूँद कोई मोती बन जायेगी

उठेगी दिव्य गंध
कपूर या लोबान सी
महक उठेगा रेगिस्तान
श्रम-क्लांत युवती के सद्य स्नात शरीर सा
रेत की खुशबू फ़ैल जायेगी दिगदिगंत

यदि बेवफा रहा बादल
तो रेत का दुःख दिखेगा धरती के गाल पर
अधबहे परनाले के रूप में
बादल हुआ अगर पागल प्रेमी
तो हरख हरख गायेगी रेत
पगलायी धरती उगा देगी कुछ भी
जगह जगह,यहाँ वहां
हरा, गुलाबी,नीला,पीला
काम का,बिना काम का
कंटीला,मखमली,सजीला या ज़हरीला भी
धूसर रेत पर चलेंगे हल
हरी हो जायेगी धरती की कोख

कुछ कीजिये

वक़्त बेआवाज़ है,कुछ कीजिये
ये धरा मोहताज़ है,कुछ कीजिये

लग रही मासूम सी जो सेमिनार
एक साज़िश,राज़ है,कुछ कीजिये

अब तरक्की मांगती है नर-बलि
ये गलत अंदाज़ है,कुछ कीजिये

हो गयी धरती की बेनूरी बहुत
आसमां नाराज़ है,कुछ कीजिये

ज़िन्दगी को जो तिजारत मानते
वक़्त के सरताज है,कुछ कीजिये

बस शिकंजों में कसा है आदमी
क़ैद में परवाज़ है,कुछ कीजिये

वक़्त मरहम है सुना हम ने बहुत
वक़्त ही नासाज़ है,कुछ कीजिये

Wednesday, April 20, 2011

अनाम होता है

बज़्म में ज़िक्र आम होता है
आदमी क्यों गुलाम होता है

जो हों पूरी तो हसरतें क्या है
यूँ ही जीवन तमाम होता है

तफसरा ज़िन्दगी पे देते हैं
जब भी हाथों में जाम होता है

वक़्त धोबी है पूरे आलम का
आदतन बेलगाम धोता है

ज़िन्दगी हार के वो कहते है
जीत का ये इनाम होता है

मुफलिसी के तमाम किस्से है
एक फक्कड़ निजाम होता है

जिस को हासिल हुआ उसे पूछो
एक किस्सा अनाम होता है

Friday, April 15, 2011

खता रही ना

अपना पीना भी क्या पीना
जीना मरना,मरना जीना

उन को प्राणायाम लगा है
हांफा जब भी अपना सीना

कितने फ़र्ज़,क़र्ज़ कितने थे
रहा सफ़र में सदा सफीना

एक अंगूठी बन जायेगा
कहाँ अकेला रहा नगीना

हर कश्ती को पार लगाये
ऐसी कोई हवा बही ना

बातें भी शमशीरें होती
हुई कभी भी सुना सुनी ना

रिश्ते क्यों बेमानी लगते
अपनी कोई खता रही ना

Wednesday, April 13, 2011

अहसान है

हादिसों का चार सू इमकान है
लोग महफ़िल के मगर अनजान है

तोड़ देते आदमी की रूह को
ये ग़ज़ब के सिरफिरे अरमान है

क्या तआर्रुफ़ पूछते है बारहा
आप जैसे हूबहू इंसान है

उन फरिश्तों की अलग तासीर थी
इन फरिश्तों का अलग ईमान है

चाँद से जब से हुई है दोस्ती
चाँदनी मेरे यहाँ मेहमान है

खासियत तो देखिये पापोश की
हर क़दम की रूह की पहचान है

राह भूला भी नहीं,भटका नहीं
बस मेरा खुद पर यही अहसान है

Monday, April 11, 2011

भाया नहीं

गो कहन में इल्म का साया नहीं
राग फिर भी बेसुरा गाया नहीं

छान मारे कारवां औ रहगुजर
रहबरों में कुछ हुनर पाया नहीं

एक पूँजी सी मिली थी ज़िन्दगी
एक लम्हा भी किया जाया नहीं

वो बुलंदी इसलिये ना पा सका
खाक होने का शऊर आया नहीं

सब मुखौटा हों हमें मंज़ूर है
तू मुखौटा हो ये कुछ भाया नहीं

हम जले, जलते रहे है बारहा
क्यूँ अभी माहौल गरमाया नहीं

Saturday, April 9, 2011

सर जायेगा

नफरतों से जब कोई भर जायेगा
काम कोई दहशती कर जायेगा

इक गली,इक बाग़ कोई छोड़ दो
एक बच्चा खेल कर घर जायेगा

बागबाँ को क्यों खबर होती नहीं
फूल इक अहसास है मर जायेगा

रेत के सहरा को कब मालूम है
एक बादल तर-ब-तर कर जायेगा

अब यक़ीनन राह भूलेगा कोई
जब कोई यूँ कौम को भरमायेगा

काश कोई इन धमाकों को कहे
नींद में बच्चा कोई डर जायेगा

हुक्मरां की चाल तो तफरीह है
फिर किसी प्यादे का ही सर जायेगा

Friday, April 8, 2011

रेत राग

कोसों तक
जब सिर्फ सन्नाटा गूंजता है
तब बजाता है आदमी
बांसुरी,अळगोजा
मोरचंग,खड़ताल
रावणहत्था या सारंगी
बहुत अकेला हुआ आदमी
तब गाता है
रेत राग

Thursday, April 7, 2011

कैसी होती है रेत

कैसी होती है रेत

सिहर उठता हूँ मैं
यह सोच कर
अगर किसी दिन मेरी पोती ने पूछ लिया

क्या होता है ?
फोग,खींप,बुई
आक ,सत्यानाशी,जंगल जलेबी
कागारोटी,इमली,निम्बोली,ब़रबंटा
सेवण,धामन,कांस,सरकंडा

क्या होता है ?
कागडोड,कमेड़ी
सियार,लोमड़ी
मोर,कबूतर,कौव्वा,गिद्ध
गोह,गोयरा,सांप,सलेटिया
बघेरा,तेंदुआ,नाहर

क्या होता है ?

आँगन,सेहन,चौबारा
तिबारा,टोडी,छज्जा
मालिया,दुछत्ती,गुभारिया

अगर उस ने पूछ ही लिया किसी दिन
क्या होती है गाय
कैसी होती है रेत
तब मेरे पास शायद न हो इन के फोटो भी

Wednesday, April 6, 2011

चांदनी रात में रेगिस्तान

चांदनी रात में
रेगिस्तान खोलता है अपने राज

उन्नत वक्ष से टीले
एक के बाद एक
भिन्न रूपाकारों में
मांसल गोलाइयों से
अनावृत पसरे है
रति-श्रम से थके
या बेसुध सुरापान कर
या अम्मल डकार कर
या आत्म केन्द्रित रूप गर्विता से

सम्मोहक गहराइयाँ
विवश करती है
मुंह छुपा इस मांसल सौन्दर्य को
छु कर महसूस करने को

ये अप्रतिम, अनंत
अनगढ़,आदिम सौन्दर्य-राशि
फैली है मूक आमंत्रण सी
सभी दिशाओं में
आकंठ उब-डूब करती हुई
चाँद भी देखता है
ठगा सा

वैसे ही जैसे
कभी रह गया होगा
ठगा सा
गौतम-पत्नी अहिल्या को देख कर
शापित अहिल्या की रूप-राशि का कोई हिस्सा
प्रस्तर न बन कर
बन गया था यह रेत-राशि
चाँद आज भी
सम्मोहित देखता रहता है
जड़,निःशब्द
गौतम के शाप के बावजूद

इस अप्रतिम,अनंत
अनगढ़, आदिम सौन्दर्य-राशि के
मखमली स्पर्श को
पी लो,जी लो
या
रोम रोम में
महसूस कर लो
सिहरन सा
या अपना लो
इस जड़ निःशब्द
चाँद की साक्षी में