Monday, April 11, 2011

भाया नहीं

गो कहन में इल्म का साया नहीं
राग फिर भी बेसुरा गाया नहीं

छान मारे कारवां औ रहगुजर
रहबरों में कुछ हुनर पाया नहीं

एक पूँजी सी मिली थी ज़िन्दगी
एक लम्हा भी किया जाया नहीं

वो बुलंदी इसलिये ना पा सका
खाक होने का शऊर आया नहीं

सब मुखौटा हों हमें मंज़ूर है
तू मुखौटा हो ये कुछ भाया नहीं

हम जले, जलते रहे है बारहा
क्यूँ अभी माहौल गरमाया नहीं

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