गो कहन में इल्म का साया नहीं
राग फिर भी बेसुरा गाया नहीं
छान मारे कारवां औ रहगुजर
रहबरों में कुछ हुनर पाया नहीं
एक पूँजी सी मिली थी ज़िन्दगी
एक लम्हा भी किया जाया नहीं
वो बुलंदी इसलिये ना पा सका
खाक होने का शऊर आया नहीं
सब मुखौटा हों हमें मंज़ूर है
तू मुखौटा हो ये कुछ भाया नहीं
हम जले, जलते रहे है बारहा
क्यूँ अभी माहौल गरमाया नहीं
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