तुम ने कभी संभाली रेत
हम ने तो है पाली रेत
तन पर क्या रखना इस का
मन में कहीं छिपा ली रेत
होली रोज मनाती है
कभी कभी दीवाली रेत
सूरज संग अंगारा है
चंदा संग मतवाली रेत
जाने कहाँ छुपी बैठी
निकली नहीं निकाली रेत
कभी आसमां छू आती
कभी निठल्ली ठाली रेत
छू कर,जी कर,निरख,परख
अपनी देखीभाली रेत
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