दोस्तों की यूँ कमी खलती नहीं
दोस्ती लेकिन कहीं मिलती नहीं
मैं बड़ा या तू बड़ा आ नाप लें
दोस्ती में ये अदा चलती नहीं
बेसबब बैठक औ बहसें शाम की
शाम वैसी यार अब ढलती नहीं
एक हो पर दर हकीक़त यार हो
ज़िन्दगी फिर बोझ सी लगती नहीं
छीन कर खा जाएँ लड्डू गोंद का
हूक सी दिल में कहीं उठती नहीं
रात भर झगड़े, सुबह ढूँढा किये
बेकली अब इस क़दर पलती नहीं
मैं तेरा कर दूँ,तू मेरा काम कर
ये ज़रुरत दोस्ती बनती नहीं
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