बज़्म में ज़िक्र आम होता है
आदमी क्यों गुलाम होता है
जो हों पूरी तो हसरतें क्या है
यूँ ही जीवन तमाम होता है
तफसरा ज़िन्दगी पे देते हैं
जब भी हाथों में जाम होता है
वक़्त धोबी है पूरे आलम का
आदतन बेलगाम धोता है
ज़िन्दगी हार के वो कहते है
जीत का ये इनाम होता है
मुफलिसी के तमाम किस्से है
एक फक्कड़ निजाम होता है
जिस को हासिल हुआ उसे पूछो
एक किस्सा अनाम होता है
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