Friday, April 15, 2011

खता रही ना

अपना पीना भी क्या पीना
जीना मरना,मरना जीना

उन को प्राणायाम लगा है
हांफा जब भी अपना सीना

कितने फ़र्ज़,क़र्ज़ कितने थे
रहा सफ़र में सदा सफीना

एक अंगूठी बन जायेगा
कहाँ अकेला रहा नगीना

हर कश्ती को पार लगाये
ऐसी कोई हवा बही ना

बातें भी शमशीरें होती
हुई कभी भी सुना सुनी ना

रिश्ते क्यों बेमानी लगते
अपनी कोई खता रही ना

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