Wednesday, January 25, 2012

एक गज़ल मेरे संग्रह 'वक्त से कुछ आगे'में संकलित

सांस मेरी और पहरा आप का
ये फक़त अंदाज़ ठहरा आप का

रेत के जाये है,हम तो रेत से
सोचिये,गर हो ये सहरा आप का

फाड कर दामन हमारे सी दिया
लीजिये परचम सुनहरा आप का

पीढियां गुजरीं है,कोशिश छोड़ दो
हम न सीखेंगे,ककहरा आप का

हो गए कुर्बान हम जी जान से
क्या गज़ब मासूम चेहरा आप का

चीखता हूँ मैं,मेरा अधिकार है
हो भले ही गाँव बहरा आप का

Friday, January 13, 2012

chaupal aur ek ladki

चौपाल में
एक हुक्का था
एक अलाव था
सफ़ेद दाढ़ियाँ थी
ढेर सारी कहानियाँ थी
कुंआरे सपने थे
और बहुत सारी ऊष्मा थी

ऊष्मा
-दोस्ती की
-प्यार की
-ज़िन्दगी की

एक लड़की वंहा रहती थी
खिल खिल हंसती थी
हुक्के में जलती थी.
वो कोई तार थी
बहती थी हरारत जिस में ज़िन्दगी की

वो कोई झरना थी
जो छु आती थी गाँव के घर -द्वार को.
या थी वो हवा
जो बह लेती थी चारोँ ओर से
नहीं थी कोई रोक उसके लिए

चूँकि लड़की रहती थी गाँव में
इसलिए गाँव गाँव नहीं था,घर था.

एक दिन आ बसा एक ब्रह्मराक्षस
गाँव के पास ,नीले पहाड़ पर.
ले उड़ा एक दिन उस खिल खिल करती लड़की को.

तब से उस गाँव में
नहीं जलता अलाव
बंद हो गया हुक्का
आग बँट गई चूल्हों में.
पथरा गया गाँव

खत्म हो गयी हरारत गाँव की.
तब से गिर रही है बर्फ गाँव में
रोज़ गिरती है,गिर रही है लगातार
पहुँच रही है लोगों के बिस्तरों तक .

छोड़ गई लड़की
सूनी चौपाल
ठंडा अलाव
पथराया सर्द मौसम
बर्फ टपकाता हुआ !

Wednesday, January 11, 2012

ek taaja gazal

एक बादल है बरस कर जायेगा
आसमां कब रोज ये दोहरायेगा

खोल मत उलझी हुई ये रस्सियाँ
जो सिरा पकड़ा वही उलझायेगा

वक्त भागा जा रहा,थमता नहीं
नींद में बुड्ढा कोई बर्रायेगा

कल सुनहरी,हर नजूमी कह रहा
एक सपना कब तलक भरमायेगा

आसमां कब है पतंग को साधता
डोर का झटका,ज़मीं पर लायेगा

ये जरा सी बात मैं समझा नहीं
दिन चढेगा और फिर ढल जायेगा

Friday, January 6, 2012

अँधेरे में चमकती आँख

आओ
एक ढकोसला रचें
एक ढोंग जियें
मैं अटका दूँ तुम्हे
कुछ बिम्बों में
तुम चिपका दो
मुझ पर
कुछ उपमाएं

शब्दों की
पिंग पोंग खेलें
लपेट कर देखें
खिलखिलाती चांदनी
उघाड़ कर देखें
गुनगुनी धूप

प्रतीक बना दें
पेड़,फूल,चिड़िया को
बखिया उधेड़े
अमलतास,हारसिंगार की
मांसल पेड़ों की
टहनियों पर झूलें

झीने आवरण दें
नंगी लालसा को
पढ़ें
मरमरी,आबनूसी रंग की
इबारत

दिवालिया अहसासों की
बैलेंस शीट से
करें खुराफ़ात

शायद जान पायें
हम भी
अँधेरे में चमकती
आँख का अर्थ

Sunday, January 1, 2012

khushaamdid

मेरे अभिमन्यु
समय नहीं बदला है
अगर जन्म लेना ही है ,तो जान लो
दुनिया अब अधिक शातिर हो गई है

शकुनी अब पांसे ही नहीं फेंकता
ताल ठोकता है मैदान में
द्रोण , कृप ,भीष्म ,कर्ण और
अश्वत्थामा के कई कई संस्करण
रथी, अतिरथी और महारथी
सन्नद्ध है
अपने दिव्यास्त्रों एवं दिव्यपाशों के साथ
तुम्हारे जन्म के पहले से ही

ना जाने कितनी दुरभिसन्धिया
और सवालों के काफिले
प्रतीक्षारत है तुम्हारे लिए
तो अगर जन्म लेना ही है अभिमन्यु

सीख लो गर्भ में ही
चक्रव्यूह काट फेंकना
ढूंढ लो ज्वलंत प्रश्नों के उत्तर
मत भरमाना अभिमन्यु
इन ख्यातनाम पदकधारी
तथाकथित वीरों की वीरता से

मायावी और छलनामयी शक्तियों से
नहीं भटकती वो आंख
जो पहचानती है लक्ष्य को
वस्तुतः बहुत कायर है
ये दिव्यास्त्र ,ब्रह्मपाश ,नागपाशधारी

वीरता जन्मती है अन्दर से
शसत्रास्त्रों से सज्जित होते है कायर ही
बहुत आसान है चक्रव्यूहों का भेदन
और शस्त्रास्त्रों की काट

जरुरत है महज़ एक इच्छा की
निष्कपट ,निष्कलुष ,ज्वलंत इच्छा की
व्यक्तित्व ,मन ,प्राण को अग्निमय
करती इच्छा की

बहुत है बस एक सात्विक प्रण
कि मैं पहचानता हूँ
उद्देश्य मेरे आने का

तो भेदों चक्रव्यूह
काटो पाश
जन्मो स्वागत अभिमन्यु
खुशामदीद

ek gazal

बदमज़ा है जिंदगी,रंगीन अफ़साने तलाश
बस जुनुं ही जी सकें जो ऐसे दीवाने तलाश

ख्वाब की किरचें चुभें क्यों जानना मुश्किल नहीं
याद की अंधी गली में गुम वो तहखाने तलाश

दिल कहाँ अब हाथ तक मिलना भी मुश्किल हो गया
सर्द हाथों की वज़ह कमज़र्फ दस्ताने तलाश

यूँ नही आ पायेंगे हालात ये मामूल पे
जो ज़हर ही बाँटते हों ऐसे मयखाने तलाश

ये मशीनी सी इबादत और कितने दिन भला
सर झुके,मजबूर हो,अब ऐसे बुतखाने तलाश

खूबियां कमियां भला क्या देखना इस दौर में
आदमी को मापना है और पैमाने तलाश