चौपाल में
एक हुक्का था
एक अलाव था
सफ़ेद दाढ़ियाँ थी
ढेर सारी कहानियाँ थी
कुंआरे सपने थे
और बहुत सारी ऊष्मा थी
ऊष्मा
-दोस्ती की
-प्यार की
-ज़िन्दगी की
एक लड़की वंहा रहती थी
खिल खिल हंसती थी
हुक्के में जलती थी.
वो कोई तार थी
बहती थी हरारत जिस में ज़िन्दगी की
वो कोई झरना थी
जो छु आती थी गाँव के घर -द्वार को.
या थी वो हवा
जो बह लेती थी चारोँ ओर से
नहीं थी कोई रोक उसके लिए
चूँकि लड़की रहती थी गाँव में
इसलिए गाँव गाँव नहीं था,घर था.
एक दिन आ बसा एक ब्रह्मराक्षस
गाँव के पास ,नीले पहाड़ पर.
ले उड़ा एक दिन उस खिल खिल करती लड़की को.
तब से उस गाँव में
नहीं जलता अलाव
बंद हो गया हुक्का
आग बँट गई चूल्हों में.
पथरा गया गाँव
खत्म हो गयी हरारत गाँव की.
तब से गिर रही है बर्फ गाँव में
रोज़ गिरती है,गिर रही है लगातार
पहुँच रही है लोगों के बिस्तरों तक .
छोड़ गई लड़की
सूनी चौपाल
ठंडा अलाव
पथराया सर्द मौसम
बर्फ टपकाता हुआ !
2 comments:
Zindagi ki hararat par.....tapakti hui barf.....!
Ashvani bhai....Khoob !
waah ...bahut sunder
pls word verification hta len ..
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