Sunday, January 1, 2012

khushaamdid

मेरे अभिमन्यु
समय नहीं बदला है
अगर जन्म लेना ही है ,तो जान लो
दुनिया अब अधिक शातिर हो गई है

शकुनी अब पांसे ही नहीं फेंकता
ताल ठोकता है मैदान में
द्रोण , कृप ,भीष्म ,कर्ण और
अश्वत्थामा के कई कई संस्करण
रथी, अतिरथी और महारथी
सन्नद्ध है
अपने दिव्यास्त्रों एवं दिव्यपाशों के साथ
तुम्हारे जन्म के पहले से ही

ना जाने कितनी दुरभिसन्धिया
और सवालों के काफिले
प्रतीक्षारत है तुम्हारे लिए
तो अगर जन्म लेना ही है अभिमन्यु

सीख लो गर्भ में ही
चक्रव्यूह काट फेंकना
ढूंढ लो ज्वलंत प्रश्नों के उत्तर
मत भरमाना अभिमन्यु
इन ख्यातनाम पदकधारी
तथाकथित वीरों की वीरता से

मायावी और छलनामयी शक्तियों से
नहीं भटकती वो आंख
जो पहचानती है लक्ष्य को
वस्तुतः बहुत कायर है
ये दिव्यास्त्र ,ब्रह्मपाश ,नागपाशधारी

वीरता जन्मती है अन्दर से
शसत्रास्त्रों से सज्जित होते है कायर ही
बहुत आसान है चक्रव्यूहों का भेदन
और शस्त्रास्त्रों की काट

जरुरत है महज़ एक इच्छा की
निष्कपट ,निष्कलुष ,ज्वलंत इच्छा की
व्यक्तित्व ,मन ,प्राण को अग्निमय
करती इच्छा की

बहुत है बस एक सात्विक प्रण
कि मैं पहचानता हूँ
उद्देश्य मेरे आने का

तो भेदों चक्रव्यूह
काटो पाश
जन्मो स्वागत अभिमन्यु
खुशामदीद

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