Tuesday, April 17, 2012

सच के चूहे

सच कहना कुछ खतरनाक है
ये पक्का था
बहुत कुलबुलाता रहता था
मगर वो कीड़ा
इक हांडी में गाड़ दिया
घर के पिछवाड़े
और सजा दी
इक सुन्दर सी फुलवारी भी
वहम भरी तितली
मंडराती ही रहती थी

सच के कीड़े
कुछ दर्दीले
कई कंटीले और पनीले
बन जाते हैं
झबरीली पूंछों के चूहे
कुतर गये वो
गढ़ी गयी
समतल,चिकनी
रपटीली सतहें
कुतर गये
कुछ घिसे गये
कोनों की आभा
रेगमाल की रगडें खा कर
एक सुच्चिकन
इक मनभावन
देह लिए जो
रातों होड किया करते थे
इन तारों से

क्या कुतरा है
झूठ लिथडता ही रहता है
जैसे उधड़ा फाल
पुरानी साड़ी का हो

सच के चूहे शायद कुतरें
अंधकार भी
झाँक रहा हो
जिस के पीछे
नन्हा सूरज
सच का पैरोकार
रौशनी का हामी भी 

Saturday, April 14, 2012

एक गज़ल

मत करो तीखे सवाल
बेवज़ह होगा बवाल

यूँ कहाँ किस्मत पलटती
छोड़,मत सिक्का उछाल

कीमती कुछ तो मिलेगा
याद कि सलवट खंगाल

अब मदारी बेवज़ह हैं
चल ज़मूरे पर निकाल

तल्ख़ आपाधापियों में
क्या हराम औ क्या हलाल

इक नया सूरज तलाशो
ये अंधेरों का दलाल 

Wednesday, April 11, 2012

jaan ramdhan


दांव लगाता इक सटोरिया 
जिंस कई गायब हो जाती
 बिक जाती धनिया की हंसुली 
मंगल सूत्र लरजते कितने 
उठापटक होती शेयर की 
धमा चौकड़ी बाज़ारों में 
सोने सी फसलें खेतों में 
खड़ी खड़ी मिटटी हो जाती 
हरे भरे कुछ बाग बगीचे 
बच्चों की थोड़ी किलकारी 
कुछ जवान सपने सिन्दूरी 
हांड़ी में खिचड़ी की खदबद
सब सहमे से 
और गाय की आँख 
उदासी से भर जाती 

सूखे आंसू लिए रामधन
 किस  को कोसे 
धरती ने भरपूर दिया है 
किस जादू से उस का सोना
मिटटी होता 
सर में सींग  उगाए 
थोड़े पेट थुलथुले
 एक फोन पर ले उड़ते 
रोटी की थाली 
प्याज मिर्च तक गायब कर दें 

जान रामधन
कमोडिटी एक्सचेंज का डिब्बा 
क्यों हँसता है

kya kya janen

बस इतना ही
जानो मित्रों 
जिसे जानना 
बहुत जरूरी 
अधिक जानना 
खतरनाक है 
मत देखो 
खिडकी से बाहर 
परदे के पीछे 
मत झांको 
नींव लिजलिजी
क्या देखोगे
तहखाने
वीभत्स मिलेंगे
कोने बहुत
घिनौने होंगे
पार धुंए के
घुटन मिलेगी
कोहरे की चादर
में लिपटी
आधी कही
कहानी होगी
अगर गलीचा
भी झड्काया
छनी छनाई
धूल मिलेगी
पार क्षितिज के
किस ने देखा
शून्य कोई
सुनते आते हैं

इक मरीचिका
जीना अच्छा
सुनो मित्र
ऐसा करते हैं
शतुरमुर्ग से
करें दोस्ती
कछुए को
ज्ञानी स्वीकारें

Sunday, April 8, 2012

रिश्ता

रिश्ता जैसे खारा तूम्बा 
चित्ताकर्षक 
जैसे पीली गेंद चमकती 
जैसे एक खिलंदड बच्चा 
पल भर भी ना टिक कर बैठे 
सोने कि इक ठोस डली सा 
बहुत लुभाता 
पर काटो तो 
कड़वाहट से मुंह भर जाता 

रिश्ता जैसे रसगुल्ला है 
मीठा मीठा 
गप गपा गप 
रस में डूबा 
इतना ही बस 
एक चिपचिपाहट छोडेगा 
एक बूँद फर्श पर इस की
कई चींटियों को न्योता है 

रिश्ता आक और सेमल सा 
पंखों वाले बीज लिए है
उड़ जायेगा 
हाथ न आये 
जम जायेगा दूर देश में 
बन जायेगा पेड़ भी कोई 
छाया मगर कहाँ मिलती है  
पेड़ अगर हो दूर देश में 

दूध और पानी सा रिश्ता 
बहुत कठिन है 
अलग अलग कर पाना 
फिर भी 
जरा आंच पर रख कर देखो 
उड़ जायेगा सारा पानी 

रिश्ता आदिम 
जंगल जैसा 
इक दूजे से अलग 
परस्पर निर्भर फिर भी 
पनपेगा पर्याप्त जगह में 
धूप,हवा,पानी सब साझे 
साझे मौसम के फटकारे 
ज्वालामुखी फटा गर कोई 
लावा जम कर 
फूल बनेगा 

Sunday, April 1, 2012

zurm


चौराहे पर इक सपना गर 
क़त्ल हो गया 
ठंडी लाशें अगर 
घरों में घूमा करती 
खिल खिल करती लड़की 
गूंगी गुडिया बनती 
तकिया गर सिसकी सिसकी 
धधका करता है 
शब्द बाण से घायल होती 
रोज जवानी 
एक भयावह सपने जैसा 
बिस्तर हो जब 

इक बूढा बरगद सोचे 
जीना मजबूरी 
छाला छाला पाँव 
हाथ लकवा मारे से 
छाती जैसे टनों बोझ के
तले दबी हो 
जगती का कल्याण मनाती 
वेड ऋचाएं 
थर्राती हो 
घर के दरवाजे आने से 

इक बर्फीली नदी जमी हो 
आँगन में जब 
इक उदास सा नीम खड़ा हो 
मुंह लटकाए 
सोन चिरैया गाती रहती 
शोक गान सा 
काली कुतिया 
गली गली रोती फिरती है 
इक हारा सुलगा करता है 
चुपके चुपके 

हां सारे हैं जुर्म 
मगर परिभाषित कब हैं 
दंड संहिता चुप्पी साधे 
मुंह फेरे है 

bhadbhuje

ठान लिया था सब ने
वो अवतार सरीखे
आये हैं अहसान जताने
धरा धाम पर
मूंग दलेंगे
इंसानी छाती पर वो ही
बहुत कुशल भौंहे
उतनी ही चपल उंगलियां
धडकन धडकन नृत्य करे तो
ताल पे उन की
हर बिसात पर मोहरे
वो ही सजा सकेंगे
जीत हार का अर्थ भला क्या
चालें चलना
शगल पुराना
चालें उन की
और सभी मोहरे
या दर्शक
ताल पे नाचें
ताली पीटें

भडभूजे कुछ
भाड़ झोंकते
बोला करते
हे अवतारी
समय मिले तो
भाड़ पे आना

teen paat dhaak ke

लोक लुभावन
फूल खिला है
फिर पलाश का
सूर्ख दहकते अंगारे सा
भ्रम उपजाता
आग लगी हो जैसे कोई
इस जंगल में
कितनी ही आशाएं विकसी
साथ में इस के
डाल गले में बांहे इस के
झूमा करती
पत्ती पत्ती पर
लिख डाले नाम सभी ने
बाँध दिए धागे कच्चे
मन्नत के कितने
अंगारों सी दहक लाल को
सब ने ही तो जी कर देखा

कौन जानता था
वो केवल एक ढाक है
जिसके होते
तीन पात ही