Wednesday, April 11, 2012

jaan ramdhan


दांव लगाता इक सटोरिया 
जिंस कई गायब हो जाती
 बिक जाती धनिया की हंसुली 
मंगल सूत्र लरजते कितने 
उठापटक होती शेयर की 
धमा चौकड़ी बाज़ारों में 
सोने सी फसलें खेतों में 
खड़ी खड़ी मिटटी हो जाती 
हरे भरे कुछ बाग बगीचे 
बच्चों की थोड़ी किलकारी 
कुछ जवान सपने सिन्दूरी 
हांड़ी में खिचड़ी की खदबद
सब सहमे से 
और गाय की आँख 
उदासी से भर जाती 

सूखे आंसू लिए रामधन
 किस  को कोसे 
धरती ने भरपूर दिया है 
किस जादू से उस का सोना
मिटटी होता 
सर में सींग  उगाए 
थोड़े पेट थुलथुले
 एक फोन पर ले उड़ते 
रोटी की थाली 
प्याज मिर्च तक गायब कर दें 

जान रामधन
कमोडिटी एक्सचेंज का डिब्बा 
क्यों हँसता है

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