Saturday, April 14, 2012

एक गज़ल

मत करो तीखे सवाल
बेवज़ह होगा बवाल

यूँ कहाँ किस्मत पलटती
छोड़,मत सिक्का उछाल

कीमती कुछ तो मिलेगा
याद कि सलवट खंगाल

अब मदारी बेवज़ह हैं
चल ज़मूरे पर निकाल

तल्ख़ आपाधापियों में
क्या हराम औ क्या हलाल

इक नया सूरज तलाशो
ये अंधेरों का दलाल 

2 comments:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...





आदरणीय अश्वनी शर्मा जी
सस्नेहाभिवादन !

यूं कहां किस्मत पलटती
छोड़, मत सिक्का उछाल

अच्छी ग़ज़ल कही है जनाब !
मुबारकबाद!

शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार

कभी शस्वरं पर भी तशरीफ़ लाइएगा …

गुड्डोदादी said...

सुंदर गजल
यूं कहां किस्मत पलटती
छोड़, मत सिक्का उछाल