Sunday, January 30, 2011

खेल खेल में

एक खेल तुम खेलो
एक खेल मैं
तुम्हारे खेल में
शेयर मार्केट की बास्केट बाल
के साथ
रक्तदाब का पैमाना
ऊपर नीचे होगा
मेरे खेल में
जीने की चाहत
खेत में गेंहू के
नवांकुर सी फूटेगी
ऊंची नीची धरती पर
मैं भी खेलूँगा तुम्हारी तरह
रक्तदाब ऊपर नीचे होने का खेल
तुम्हारे खेल का पैमाना बहुत बड़ा है
नदी, पेड़, जंगल
गाँव,देश,धरती
जाति,धर्म,आदमी
किसी का भी
गला घोंट सकते हो
मेरे खेल में चींटी भी
जीवन का अधिकार रखती है
तुम अपनी शर्तों पर खेलते हो
खिलाडी भी तुम
रेफरी भी तुम
लेकिन शर्तों पर खेल नहीं
युद्ध होते है
खेलना है तो मेरी तरह आओ
शर्तहीन
जीत और हार के डर से दूर
खेल को ज़िन्दगी बना कर नहीं
ज़िन्दगी को खेल बना कर
तुम अहसास में व्यवसाय ढूंढते हो
और मैं व्यवसाय में भी अहसास
तुम रिश्तों को भुनाते हो
मैं रिश्तों को जीता हूँ
तुम खेल को रंग देते हो
मैं रंगों से खेलता हूँ
प्यारे
खेल में खेल नहीं
खेल को खेल सा खेलो
वर्ना खेल के खेल को झेलो

Saturday, January 29, 2011

दोहे सावन के

कुछ दोहे सावन के

बादल बरसा टूट कर,नेह भरा अनुबंध
हुलस हुलस नदिया बही,टूट गए तटबंध

बूँद बूँद बरसा कभी,कभी मूसलाधार
आवारा सावन करे,मनमौजी व्यवहार

फिर से इक दिन आयेगा,फिर से होगी रात
फिर फिर सावन आयेगा,फिर होगी बरसात

ये सावन है हाथ में,पूरे कर सब चाव
क्या जाने कितना चले,ये कागज़ की नाव

बिजली कडकी जोर से,घिरी घटा घनघोर
दबे पाँव बाहर हुआ,मेरे मन का चोर

ये सावन है सोलवां,कर सोलह श्रृंगार
ये नदिया बरसात की,बहनी है दिन चार

Tuesday, January 18, 2011

चिडिया से

चिड़िया तुम चहचहाइ
पौ फटने पर
तुम्हारे चहचहाने पर ही है
दारोमदार पौ फटने का.

अँधेरे को फाड़ कर निकलता
सिन्दूरी सूरज का गोला
चमत्कार है तुम्हारी ही आस्था का
तुम्हारी ही आस्था ने बिखेरे है
जीवन में रंग

पेड़ों को पराग
गेंहूँ को बाली
आदमी को भरा धान का कटोरा
मिला है तुम्हारे ही गीतों से

जानता हूँ आदमी आजकल
धान का कटोरा नहीं
बन्दूक की गोली लिये
ढूँढता है तुम्हे
पर चिडिया तुम जिन्दा रहोगी
चाहे कबूतर बन कर
चाहे फाख्ता

चहचहाओगी नन्हे बच्चों के लिये
जो अपनी तुतलाती बोली में
तुम से स्वर मिलायेंगे
गोलियां और अंधकार दोनों ही है

लेकिन पौ फटने का दारोमदार
तुम पर ही है
ओ चिड़िया
चहचहाओ
फूल के लिये
नन्हे बच्चों के लिये
गेंहूँ और जौ की बालियों के लिये

उस सब के लिये
जो देता है जिंदगी को अर्थ
जो देता है जिंदगी को रंग

उस सिन्दूरी नन्हे सूरज के लिये
जो चाहो तो हाथों में भर लो
पर जो कारण है पौ फटने का
चहचहाओ उस नन्हे सूरज के लिये

Friday, January 14, 2011

आसमान में पतंग

उड़ती है पतंग आसमान में
रंग बिरंगी
अलग अलग अंदाज की
अलग अलग रूपाकारों में

कोई नीची,कोई ऊंची
कोई खिंचती हुई
कोई खींचती हुई

कोई ठुमकती हुई अनाड़ी हाथों में
कोई नाचती हुई
उस्ताद पतंगबाज की ताल पर

कोई छु रही निरंतर ऊंचाइया
कोई सुन रही है
वो का ////////////////// टा//////////////

पतंगे घूमती है आसमान में
शाम तक उछल कूद कर
थक जायेगी पतंग
आसमान वैसा ही रहेगा
समय के पर भी है एक सूरज
जो आतुर है
तुम्हारे बुलावे का
पुकारो कभी उसे
वैसे ही
जैसे पुकारता है
बच्चा मां को
सौंप दो राशि राशि खुद को
देखो
सूरज बिखरता है खील खील
मन आंगन को सराबोर करता हुआ
हजार हजार रोशनियों का चमत्कार
आह्लाद
और आनंद एक साथ
बोले कौन
बोले कैसे
ये होता है तो बस होता है
बस फिर सूरज ही सूरज होता है
नहीं होता कोई और
न मैं,न तू,न आंगन
कुछ नहीं बचता जब
तभी होता है सूरज खील खील