Saturday, January 29, 2011

दोहे सावन के

कुछ दोहे सावन के

बादल बरसा टूट कर,नेह भरा अनुबंध
हुलस हुलस नदिया बही,टूट गए तटबंध

बूँद बूँद बरसा कभी,कभी मूसलाधार
आवारा सावन करे,मनमौजी व्यवहार

फिर से इक दिन आयेगा,फिर से होगी रात
फिर फिर सावन आयेगा,फिर होगी बरसात

ये सावन है हाथ में,पूरे कर सब चाव
क्या जाने कितना चले,ये कागज़ की नाव

बिजली कडकी जोर से,घिरी घटा घनघोर
दबे पाँव बाहर हुआ,मेरे मन का चोर

ये सावन है सोलवां,कर सोलह श्रृंगार
ये नदिया बरसात की,बहनी है दिन चार

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