Monday, December 10, 2012

kavita

सर्वश्रेष्ठ कवितायेँ 
कलम दवात से 
कागज पर नहीं लिखी गयी 
दरअसल वो कभी भी,कहीं भी 
नहीं लिखी गयी

वो बस जी गयी थी
आंसू,पसीने और खून मे
अलग अलग काल खण्डों मे
धरती के केनवास पर
विभिन्न रंगों,रूपाकारों मे
बिखर गयी थी कविता

चुटकी भर नमक सी
मुट्ठी भर रेत सी
बांहों भर इंद्रधनुष सी
छा गयी थी आसमान पर
बरस गयी थी
छिपे कोनों मे

कह दी गयी थी
एक थपकी से
तिरछी नज़र से
बेबस निगाह से
धरती कुरेदते अंगूठे से
बैठे कलेजे से
माथे पर रखे हाथ से
सिसकी से
हिचकी से
तलवार से
हल से
फांसी के फंदे से

कहाँ कहाँ
अभिव्यक्त नहीं हुई कविता
बस नहीं आ पाई
कागज पर 

Sunday, December 9, 2012

ek gazal

बोलती खामोशियाँ भी 
ऊबती नजदीकियां भी 

सर चढ़े वैताल सी हें 
बेवज़ह मायूसियाँ भी 

जागती आँखें पनीली 
अल सुबह सरगोशियाँ भी 

लौटती हें घूम फिर कर 
जी गयी नादानियाँ भी

हें पहाड़ों की कशिश मे
रेत सी आसानियाँ भी

मौत थी या जिंदगी थी
वो मरी मरजानियाँ भी

मानता सौगात है वो
दी गयी कुर्बानियाँ भी