Sunday, December 9, 2012

ek gazal

बोलती खामोशियाँ भी 
ऊबती नजदीकियां भी 

सर चढ़े वैताल सी हें 
बेवज़ह मायूसियाँ भी 

जागती आँखें पनीली 
अल सुबह सरगोशियाँ भी 

लौटती हें घूम फिर कर 
जी गयी नादानियाँ भी

हें पहाड़ों की कशिश मे
रेत सी आसानियाँ भी

मौत थी या जिंदगी थी
वो मरी मरजानियाँ भी

मानता सौगात है वो
दी गयी कुर्बानियाँ भी

1 comment:

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/12/2012-8.html