बोलती खामोशियाँ भी
ऊबती नजदीकियां भी
सर चढ़े वैताल सी हें
बेवज़ह मायूसियाँ भी
जागती आँखें पनीली
अल सुबह सरगोशियाँ भी
लौटती हें घूम फिर कर
ऊबती नजदीकियां भी
सर चढ़े वैताल सी हें
बेवज़ह मायूसियाँ भी
जागती आँखें पनीली
अल सुबह सरगोशियाँ भी
लौटती हें घूम फिर कर
जी गयी नादानियाँ भी
हें पहाड़ों की कशिश मे
रेत सी आसानियाँ भी
मौत थी या जिंदगी थी
वो मरी मरजानियाँ भी
मानता सौगात है वो
दी गयी कुर्बानियाँ भी
हें पहाड़ों की कशिश मे
रेत सी आसानियाँ भी
मौत थी या जिंदगी थी
वो मरी मरजानियाँ भी
मानता सौगात है वो
दी गयी कुर्बानियाँ भी
1 comment:
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