Monday, December 10, 2012

kavita

सर्वश्रेष्ठ कवितायेँ 
कलम दवात से 
कागज पर नहीं लिखी गयी 
दरअसल वो कभी भी,कहीं भी 
नहीं लिखी गयी

वो बस जी गयी थी
आंसू,पसीने और खून मे
अलग अलग काल खण्डों मे
धरती के केनवास पर
विभिन्न रंगों,रूपाकारों मे
बिखर गयी थी कविता

चुटकी भर नमक सी
मुट्ठी भर रेत सी
बांहों भर इंद्रधनुष सी
छा गयी थी आसमान पर
बरस गयी थी
छिपे कोनों मे

कह दी गयी थी
एक थपकी से
तिरछी नज़र से
बेबस निगाह से
धरती कुरेदते अंगूठे से
बैठे कलेजे से
माथे पर रखे हाथ से
सिसकी से
हिचकी से
तलवार से
हल से
फांसी के फंदे से

कहाँ कहाँ
अभिव्यक्त नहीं हुई कविता
बस नहीं आ पाई
कागज पर 

2 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह.....
बेहतरीन......
देख रही हूँ एक कविता कागज़ पर.....

सादर
अनु

Ankur Jain said...

बहुत ही सुंदर कविता...कागज पर ना सही एक ब्लॉग पर नज़र आ रही है।।।