Thursday, May 9, 2013

gazal


रोज उगे पूरब से इक घसियारा दिन
डूब मरे पश्चिम में फिर बेचारा दिन

अटक गया उग कर बस जिस की साँसों में
लाख जतन कर उस ने पार उतारा दिन

नक़द ज़िन्दगी पल भर जी कर मैं देखूं
काश कहीं से मिलता एक उधारा दिन

छत पर जाने कितना चुग्गा डाल चुके
उड़ कर वापिस कब लौटा दोबारा दिन

आज नहीं तो कल होगा निश्चित जानो
किरण किरण इक बिखरेगा उजियारा दिन

3 comments:

Niraj Pal said...

यह बुधवारीय नहीं सोमवारीय है, त्रुटी के लिए क्षमा प्रार्थी।

nayee dunia said...

बहुत सुन्दर

Unknown said...

बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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