रिश्ता जैसे खारा तूम्बा
चित्ताकर्षक
जैसे पीली गेंद चमकती
जैसे एक खिलंदड बच्चा
पल भर भी ना टिक कर बैठे
सोने कि इक ठोस डली सा
बहुत लुभाता
पर काटो तो
कड़वाहट से मुंह भर जाता
रिश्ता जैसे रसगुल्ला है
मीठा मीठा
गप गपा गप
रस में डूबा
इतना ही बस
एक चिपचिपाहट छोडेगा
एक बूँद फर्श पर इस की
कई चींटियों को न्योता है
रिश्ता आक और सेमल सा
पंखों वाले बीज लिए है
उड़ जायेगा
हाथ न आये
जम जायेगा दूर देश में
बन जायेगा पेड़ भी कोई
छाया मगर कहाँ मिलती है
पेड़ अगर हो दूर देश में
दूध और पानी सा रिश्ता
बहुत कठिन है
अलग अलग कर पाना
फिर भी
जरा आंच पर रख कर देखो
उड़ जायेगा सारा पानी
रिश्ता आदिम
जंगल जैसा
इक दूजे से अलग
परस्पर निर्भर फिर भी
पनपेगा पर्याप्त जगह में
धूप,हवा,पानी सब साझे
साझे मौसम के फटकारे
ज्वालामुखी फटा गर कोई
लावा जम कर
फूल बनेगा
1 comment:
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
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