Sunday, April 8, 2012

रिश्ता

रिश्ता जैसे खारा तूम्बा 
चित्ताकर्षक 
जैसे पीली गेंद चमकती 
जैसे एक खिलंदड बच्चा 
पल भर भी ना टिक कर बैठे 
सोने कि इक ठोस डली सा 
बहुत लुभाता 
पर काटो तो 
कड़वाहट से मुंह भर जाता 

रिश्ता जैसे रसगुल्ला है 
मीठा मीठा 
गप गपा गप 
रस में डूबा 
इतना ही बस 
एक चिपचिपाहट छोडेगा 
एक बूँद फर्श पर इस की
कई चींटियों को न्योता है 

रिश्ता आक और सेमल सा 
पंखों वाले बीज लिए है
उड़ जायेगा 
हाथ न आये 
जम जायेगा दूर देश में 
बन जायेगा पेड़ भी कोई 
छाया मगर कहाँ मिलती है  
पेड़ अगर हो दूर देश में 

दूध और पानी सा रिश्ता 
बहुत कठिन है 
अलग अलग कर पाना 
फिर भी 
जरा आंच पर रख कर देखो 
उड़ जायेगा सारा पानी 

रिश्ता आदिम 
जंगल जैसा 
इक दूजे से अलग 
परस्पर निर्भर फिर भी 
पनपेगा पर्याप्त जगह में 
धूप,हवा,पानी सब साझे 
साझे मौसम के फटकारे 
ज्वालामुखी फटा गर कोई 
लावा जम कर 
फूल बनेगा 

1 comment:

amrendra "amar" said...

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....