Tuesday, March 13, 2012

बातों की बात

चलो चलो रे
बातें कर लें
खट्टी-मीठी
धुंधली-उजली
अर्थवान कुछ
बहुत निरर्थक
कुछ दैहिक
कुछ देह पार की
बातें ऐसी
जिन बातों का
छोर नहीं हो
रंग-बिरंगी
कर्कश-मद्धम
दूर तलक जाने वाली भी
कही अनकही सारी बातें
और नहीं जो कह पाए वो
कुछ कनबतियां
एक फुसफुसाहट शर्मीली
अस्फुट से स्वर
कानाफूसी

कुछ सन्नाटा बरपाती सी
और तोडती कुछ सन्नाटा
खादी की
मखमल की बातें
थोड़ी हों ताजा मक्खन सी
थोड़ी दूध उफनने की भी
एक बात जंगली फूलों की
इक पराग
मधुमक्खी की भी
एक चहकती चिड़िया की हो
एक फुदकती कोई गिलहरी
बात सियारों की भी होगी
और दहाडें बाघों की भी

बातों में से
बात निकालें
यूँ बतियायें

थोडा सा आकाश तोड़ लें
धरती का कोना छिटका लें
किसी पेड़ की टहनी तोडें
किसी घोंसले से दो अंडे
बीज कहीं से
रंग बहुत से
सुर भी हों कुछ
ताल और लय पूरी पूरी
गंगाजल की शीशी कोई
और समंदर का खारापन
आग मांग लेंगे चकमक से
धीरे धीरे
दुनिया फिर से बस जायेगी

बातों बातों में फिर
पक्का हो जायेगा
अब सींचेंगे
हम बतरस ही
कोई बतकही
नहीं चलेगी
और बतंगड शब्द न् होगा
नहीं चलेगा
कोई अबोला
बोल बोलना
वर्जित होगा
बस होंगी
समवेत बोलियां

बातों के हंटर
बातों के अग्निबाण भी
बातों के गुब्बारे
बातों के हरकारे
बातों के सौदागर
बातों के कारीगर
कानों के कच्चे
कुछ टुच्चे
कनफूंके भी
सभी निरर्थक हो जायेंगे

शब्द खोखले
कब होंगे तब
बातों की बस
बात चलेगी

1 comment:

sia said...

itni rangbirangi baatein itni khubsurat rachnaa mere paas shabd nahi hai ki kis tarah se main in baaton ko byaan ko saarahun bas waah hee waah...dher sari shubhkaamnaaye......