Saturday, December 3, 2011

रेत माघ में

रजाई में दुबका सूरज
जब देर से उठेगा
जब बर्फ सी हुई रेत भी
अलसाई पड़ी रहेगी,अकारण
बस आलस्य ओढ़े हुए

सीली रेत सिमट आएगी मुट्ठी में
संवेदन शून्य
ऑपेरशन टेबल पर पड़े
मरीज सी

कोहरा कर रहा होगा
गुप्त मंत्रणा
विश्वस्त सिपहसालारों से
साम्राज्य विस्तार की

ऊँट या भेड़
के बालों को कतर कर
चारों ओर से चुभने वाले
कम्बलनुमा टुकड़े को ओढ़े
कुनमुना रहा होगा बचपन

खंखार रहा होगा बुढ़ापा
पड़े होंगे जवान शरीर चिपक कर
परस्पर ऊष्मा का
आदान प्रदान करते हुए

दुबकी होंगी भेड़ें
ऊन की बोरी बनी
कोई कुत्ता नहीं भोंकेगा
अकेला टिमटिमा रहा होगा
भोर का तारा

बस मस्ताया ऊँट
जीभ लटका कर
निकाल रहा होगा विचित्र आवाजें
कर रहा होगा प्रणय निवेदन

बूढी दादी राम के नाम के साथ
बहुओं के नाम का जाप भी
कर रही होगी मन ही मन

माघ की अलस भोर में
सुन्न पड़ा होगा रेगिस्तान
बर्फ में डुबोई
अंगुली सा

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