Tuesday, December 13, 2011

शंकरी ताई

खूबसूरत जवान विधवा
होने के खतरे
शंकरी ताई से ज्यादा
कौन जानता है

आँगन मे आई
चिड़िया भी
परों मे बाँध ले
जाती चार बात
टपका देती
किसी भी कान मे

कस्बे के जैसे
हज़ार आँख कान
होते हैं

जब तक ताऊ था
तब तक
ताऊ का 'होना' , 'न होना '
बराबर था
शंकरी ताई के लिए

पर आज जब ताऊ नहीं है
तब ताऊ का 'होना','न होना'
बराबर नहीं है
शंकरी ताई के लिए

सिरहाने लट्ठ रख कर सोई ताई
पसीने से नहाई
रोज जाग जाती है
बुरा सपना देख कर

उसांसती है
'बगैर मर्द कि औरत
जैसे हर गैर मर्द कि औरत'

जैसा भी था
जिंदगी मे
था तो एक मर्द
क्यों चला गया रे

2 comments:

विवेक मिश्र said...

अश्वनी जी! किसी जवान विधवा के दिल की पीर को समझकर बखूबी उकेरा है आपने. इस भावप्रधान रचना के लिए मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

sushila said...

"आँगन मे आई
चिड़िया भी
परों मे बाँध ले
जाती चार बात
टपका देती
किसी भी कान मे"

कितना मुश्किल हो जाता है एक खूबसूरत,जवान विधवा के लिए लोगों की बेधती-सी निगाहों और बे सिर पैर की बातों से बचाए रखना! आपने स्त्री के मन में झाँक उसकी पीर को शब्द दे दिए हैं।