प्यास मेरी ओस चाटे से बुझी कब
सूर्य की पहली किरण मुझ को मिली कब
जो पहाड़ों से बड़ी निर्मल चली थी
एक नाले ने मिटा दी,वो नदी कब
कारकुन सरकार के इस को संभालें
ये गली मेरी,रही,मेरी गली कब
सूख जाती हैं खड़ी फसलें,गज़ब है
आसमां से अम्ल की बारिश हुई कब
इक घने कोहरे मे लिपटी बस्तियां हैं
लाख चाहा,धुप की खिडकी खुली कब
पार चौखट के थी इक रंगीन दुनिया
दो कदम विश्वास से लड़की चली कब
1 comment:
बहुत खूबसूरत गज़ल है अश्वनी भाई!! हर शेर एक मुख्तलिफ तस्वीर पेश करता है... और मकते ने तो कलेजा निकाल लिया!इतनी आसानी से इतनी गहरी बात!!
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