Monday, December 19, 2011

एक गज़ल

प्यास मेरी ओस चाटे से बुझी कब
सूर्य की पहली किरण मुझ को मिली कब

जो पहाड़ों से बड़ी निर्मल चली थी
एक नाले ने मिटा दी,वो नदी कब

कारकुन सरकार के इस को संभालें
ये गली मेरी,रही,मेरी गली कब

सूख जाती हैं खड़ी फसलें,गज़ब है
आसमां से अम्ल की बारिश हुई कब

इक घने कोहरे मे लिपटी बस्तियां हैं
लाख चाहा,धुप की खिडकी खुली कब

पार चौखट के थी इक रंगीन दुनिया
दो कदम विश्वास से लड़की चली कब

1 comment:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

बहुत खूबसूरत गज़ल है अश्वनी भाई!! हर शेर एक मुख्तलिफ तस्वीर पेश करता है... और मकते ने तो कलेजा निकाल लिया!इतनी आसानी से इतनी गहरी बात!!