समय के पर भी है एक सूरज
जो आतुर है
तुम्हारे बुलावे का
पुकारो कभी उसे
वैसे ही
जैसे पुकारता है
बच्चा मां को
सौंप दो राशि राशि खुद को
देखो
सूरज बिखरता है खील खील
मन आंगन को सराबोर करता हुआ
हजार हजार रोशनियों का चमत्कार
आह्लाद
और आनंद एक साथ
बोले कौन
बोले कैसे
ये होता है तो बस होता है
बस फिर सूरज ही सूरज होता है
नहीं होता कोई और
न मैं,न तू,न आंगन
कुछ नहीं बचता जब
तभी होता है सूरज खील खील
1 comment:
Excellent poetry
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