Tuesday, August 2, 2011

गज़ल मेरे प्रकाशनाधीन संग्रह से

यूँ तो मंजिल को जान लेते हैं
रास्ते इम्तिहान लेते हैं

सोच अपनी हुई परिंदों सी
जैसे चाहे उड़ान लेते हैं

जो भी देखा है, वो ही कहते हैं
फिर भी हलफन बयान लेते हैं

वो ही बाहक जवान होते हैं
कर गुजरते जो ठान लेते हैं

जिंदगी का गणित वही समझे
जो कभी दिल की मान लेते हैं

लोग झोली भी भर नहीं पाते
लेने वाले ज़हान लेते हैं

वो जो आला गुनाह करते हैं
रहनुमा बन कमान लेते हैं

3 comments:

गीता पंडित said...

जिंदगी का गणित वही समझे
जो कभी दिल की मान लेते हैं


वाह...


हर शेर उम्दा..
आभार अश्वनी जी...

Nidhi said...

जिंदगी का गणित वही समझे
जो कभी दिल की मान लेते हैं
bahut khoob!!

saroj said...

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल अश्वनी जी