Friday, September 16, 2011

एक गज़ल

मैं बेचारा नहीं हूँ
थका हारा नहीं हूँ

ग़दर की जात का हूँ
महज़ नारा नहीं हूँ

गजर हूँ भोर का फिर
भले तारा नहीं हूँ

पढ़ो मज़मून हूँ मैं
मैं हरकारा नहीं हूँ

हूँ मालिक भी मणि का
ज़हर सारा नहीं हूँ

हूँ मीठा,हूँ कसैला
फक़त खारा नहीं हूँ

जो हूँ हक से हूँ प्यारे
तेरे द्वारा नहीं हूँ

1 comment:

AMRIT SINGH BHATI said...

BAHUT KHOOB,GAZAB