जो जुबां ने कहा सब जुबानी हुआ
अश्क दिल कि मगर तर्जुमानी हुआ
खूब गरजा,मगर, फिर भी बादल रहा
जब बरसने लगा,तब ही पानी हुआ
दिन में जो कि पसीने में महका बहुत
रात में जिस्म वो रात रानी हुआ
लाख चाहत के किस्से सुनाते रहे
लब्ज़ तेरा,मगर,इक कहानी हुआ
गो किया था ज़मीं पर ज़मीं के लिए
उन का दावा मगर आसमानी हुआ
जब गिनाने लगे वो गिनाते रहे
सांस का सिलसिला महरबानी हुआ
कागजों में ज़मींदार मालिक रहा
एक कतरा पसीना किसानी हुआ
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