Sunday, December 25, 2011

कस्बे में ठण्ड

सूरज के विरुद्ध
षड्यंत्र रच
आततायी कोहरे को
निमंत्रण किस ने दिया
कोई नहीं जानता

ठण्ड खाया क़स्बा
पथरा गया है
हरारत महसूस होती है
ज्वर हो तो ही

अलाव तापते लोग
दिखाई नहीं देते
बस खांसते,खंखारते हैं
बंद कमरों में

सक्षम आदेश बिना ही
अनधिकृत कर्फ्यू
जारी हो गया
कस्बे में

जमाव बिंदु से नीचे पहुंचे
पारे ने
नलों का पानी ही नहीं
जमा दिया
कस्बे की
धमनियों का रक्त भी

रजाई में दुबका क़स्बा
उनींदा पड़ा रहेगा
दिन भर
मौसम को कोसता

इस आलसी
आत्म समर्पण को
ललकारती कोई आवाज़
एक दिन गूंजेगी कस्बे में
उस दिन भी शायद
अंगडाई ही ले क़स्बा

सूरज तुम कब आओगे
इस कोहरे की चादर को
फाड कर

मैं उस दिन
सूर्य नमस्कार के मन्त्र
नहीं जपूंगा
सीधा पी जाऊँगा तुम्हे
आँखों से ही

जागेगा ये उनींदा
क़स्बा भी

1 comment:

santosh tiwary said...

atisundar....मैं उस दिन
सूर्य नमस्कार के मन्त्र
नहीं जपूंगा
सीधा पी जाऊँगा तुम्हे
आँखों से ही