आओ
एक ढकोसला रचें
एक ढोंग जियें
मैं अटका दूँ तुम्हे
कुछ बिम्बों में
तुम चिपका दो
मुझ पर
कुछ उपमाएं
शब्दों की
पिंग पोंग खेलें
लपेट कर देखें
खिलखिलाती चांदनी
उघाड़ कर देखें
गुनगुनी धूप
प्रतीक बना दें
पेड़,फूल,चिड़िया को
बखिया उधेड़े
अमलतास,हारसिंगार की
मांसल पेड़ों की
टहनियों पर झूलें
झीने आवरण दें
नंगी लालसा को
पढ़ें
मरमरी,आबनूसी रंग की
इबारत
दिवालिया अहसासों की
बैलेंस शीट से
करें खुराफ़ात
शायद जान पायें
हम भी
अँधेरे में चमकती
आँख का अर्थ
3 comments:
वाह,,, बहुत उम्दा कविता...
Priy Ashwani Ji...Ek aur shandar kavita se mulaqat huee aapke madhyam se....bilkul naye upmanon and prateekon se piroi ye rachna vaqt le naye talazon se sarokar rakhti hai...aap sadaiv prerna dete hain...Aabhar.
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सचिन का सेंचुरी नहीं - सलिल का हाफ-सेंचुरी : ब्लॉग बुलेटिन
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