Sunday, January 1, 2012

ek gazal

बदमज़ा है जिंदगी,रंगीन अफ़साने तलाश
बस जुनुं ही जी सकें जो ऐसे दीवाने तलाश

ख्वाब की किरचें चुभें क्यों जानना मुश्किल नहीं
याद की अंधी गली में गुम वो तहखाने तलाश

दिल कहाँ अब हाथ तक मिलना भी मुश्किल हो गया
सर्द हाथों की वज़ह कमज़र्फ दस्ताने तलाश

यूँ नही आ पायेंगे हालात ये मामूल पे
जो ज़हर ही बाँटते हों ऐसे मयखाने तलाश

ये मशीनी सी इबादत और कितने दिन भला
सर झुके,मजबूर हो,अब ऐसे बुतखाने तलाश

खूबियां कमियां भला क्या देखना इस दौर में
आदमी को मापना है और पैमाने तलाश

3 comments:

अरुण अवध said...

बेहतरीन .............ऊंचे मेयार के शेर ! उम्दा ग़ज़ल! बधाई !

विवेक मिश्र said...

ऊंचे ख्यालों से लबरेज हरेक शे'र और हमेशा की ही तरह किसी भी एक शे'र को कोट करना बेहद मुश्किल. दाद कबूल करें.
"ये मशीनी सी इबादत और कितने दिन भला" मिसरे में 'मशीनी सी' कुछ खटक रहा है. शायद 'मशीनों सी' से बात बन जाए. :)

Tarun Prakash said...

behtareen ghazal....hamesha ki tarah atyant arthpurn.....naye pratimano ke madhyam se halaat ka sundar chitran....badhaiiiiiiiiiiiiiii......Happy New year....