Sunday, June 3, 2012

alaav


ताप रहे हैं सब
अलाव ही
ताप,रौशनी के घेरों मे
लिए कुनकुनी
गर्माहट को
भुने आलुओं को
छीलेंगे
मूंगफली शायद
फोड़ेंगे
नहीं बैठने देंगे
लेकिन
उस अलाव पर
अन्य किसी को
नहीं समझ पाए हैं शायद
इक अलाव की गर्माहट से
ज्यादा सुख कर
हाथों से हाथों मे जाती
जिंदा गर्माहट होती है

ठंडा मौसम
अन्धकार भी
पाँव बढ़ाते रहें निरंतर
छोडो यारो
रहे सलामत
इक अलाव बस
रोशन घेरों के सायों से
बाहर साये
कितने गहरे
क्या लेना
गहराते जाएँ
लकड़ी देखें
बस अलाव की
मक्की के भुट्टों की
थोड़ी करें व्यवस्था

नंग धडंगे
कुछ मलंग भी
औघड फक्कड़
लिए मशालें
दिखते तो हैं
गलियों गलियों
फूंक झोपड़ा
अलख जगाते
गाते आते
सुनो प्रभाती

अंधकार की चादर को
फाड़ेंगे वो ही
टाँगेंगे वो
इक मशाल
इन मीनारों पर
जर्जर होते
शिखरों पर भी
सभी मुखौटों को
उखाड फेंकेंगे
इक दिन

नंगा सत्य
मलंगों का
सच्चा होता है  

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