लाल गलीचा
चलो बिछाएं
हरी दूब पर
खत आया है
खत जो
निश्चित कर देगा
मेरा कद बूता
दुनिया के मेले मे
क्या कीमत है मेरी
निश्चित कर देगा चौखट
सर जहां झुकाना
पूरे घर मे
कई पटाखे फूट रहे हैं
माँ कहती है
अब आई है जान
बुढ़ापे की लाठी मे
बाबा ने
इक सांस भरी है
ले अंगडाई
मेरे सपनों के आंसू
टपके टपके हैं
कितनी लहरें
पटक रही सर
चट्टानों पर
इस समुद्र मे
बूँद कोई
आये या जाये
हहराता ही रहे
सदा ये
बूंदों का सपना भी
क्या सपना होता है
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