Wednesday, May 30, 2012

boond ka sapna


लाल गलीचा
चलो बिछाएं
हरी दूब पर

खत आया है
खत जो
निश्चित कर देगा
मेरा कद बूता
दुनिया के मेले मे
क्या कीमत है मेरी
निश्चित कर देगा चौखट
सर जहां झुकाना

पूरे घर मे
कई पटाखे फूट रहे हैं
माँ कहती है
अब आई है जान
बुढ़ापे की लाठी मे
बाबा ने
इक सांस भरी है
ले अंगडाई

मेरे सपनों के आंसू
टपके टपके हैं
कितनी लहरें
पटक रही सर
चट्टानों पर
इस समुद्र मे
बूँद कोई
आये या जाये
हहराता ही रहे
सदा ये
बूंदों का सपना भी
क्या सपना होता है

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