Friday, May 4, 2012

sapna

गदबदे बच्चे सा वो 
अनमोल सपना 
रात मेरी गोद बैठा 
फिर पकड़ उंगली मेरी 
डग भर चला था

एक ललछौंही ललक सा
फिर लपक कर
डाल कर मेरे गले
छोटी सी बाँहें
देर तक लिपटा रहा
आश्वस्त करता
फुसफुसाया फिर
मैं हिस्सा हूँ तुम्हारा
इक महक बन
रम गया हूँ
बीज हूँ मैं
ढूंढ भूमि उर्वरा अब
मैं फलूँगा

इक इबारत हूँ
मुझे लिख
आसमां पर
मैं बरस जाऊँगा इक दिन
गा उठेगी
ये धरा भी
पाल मुझ को

थपकियाँ दे
मत सुला
जागा रहा तो
जिंदगी के अर्थ
तुझ पर खोल दूंगा

मैं हूँ कुंजी
हूँ इशारा
साथ ले मुझ को
चला चल
बंद दरवाज़ों के
पीछे क्या
तुझे बतला सकूंगा

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