शब्द खोखले
शब्द लिजलिजे
शब्द गुनगुने
शब्द अनमने
करें शब्द को तार-तार अब
पूछें,अर्थ कहाँ छोड़ा है
वही अर्थ
सीधा सादा सा
हाथ पकड़ ले
साथ टहल ले
पीठ खुजा दे
करे गुदगुदी
चाहे घाव हरे कर दे,पर
वार केरे तो सीधा मारे
शब्द गुलगुले से मीठे हों
मंतव्यों की लिए श्रृंखला
निहित कहीं कुछ
गूढ़ बहुत सा
कई झरोखे
महराबें कुछ
कपट-द्वार भी
बहुत कंगूरे
दूर दूर तक
खुदी सुरंगे
ऊबड़ खाबड़ से
रस्ते कुछ
तत्सम,तद्भव
ढूँढें उद्भव
शब्द नहीं जब
शब्द स्वयं ही
स्खलित अर्थ का
अर्थ भला क्या
शब्द अगर
बेजान हुए हैं
शायद पौरुष भी
बीता है
कहीं कोख मे
सूनापन है
ममता का
आँचल रीता है
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