Wednesday, October 17, 2012

खुरुंड खरोंचे

खुरुंड खरोंचे
धरती खोदें
किसी पेड़ की
छाल छील दें
पिथ कर देंगे
इक मेंढक को
मर्म तलाशें
आक्यु पंक्चर की सुई के
नोक बनायें
बड़े जतन से
शब्द बाण की

तालाबों पर फैली काई
अंदर कहीं
फ़ैल जायेगी
खपरैलों में छिपी छिपकली
कब सर पर
आ कर टपकेगी
इक गोरैया
उड़ जायेगी

किसी जिबह होते
बकरे की आँख
आसमां से झाँकेगी 

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

इक गोरैया
उड़ जायेगी .... और उसे ढूँढने की बातें करते रहेंगे

रश्मि प्रभा... said...
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