चिड़िया तुम चहचहाइ
पौ फटने पर
तुम्हारे चहचहाने पर ही है
दारोमदार पौ फटने का.
अँधेरे को फाड़ कर निकलता
सिन्दूरी सूरज का गोला
चमत्कार है तुम्हारी ही आस्था का
तुम्हारी ही आस्था ने बिखेरे है
जीवन में रंग
पेड़ों को पराग
गेंहूँ को बाली
आदमी को भरा धान का कटोरा
मिला है तुम्हारे ही गीतों से
जानता हूँ आदमी आजकल
धान का कटोरा नहीं
बन्दूक की गोली लिये
ढूँढता है तुम्हे
पर चिडिया तुम जिन्दा रहोगी
चाहे कबूतर बन कर
चाहे फाख्ता
चहचहाओगी नन्हे बच्चों के लिये
जो अपनी तुतलाती बोली में
तुम से स्वर मिलायेंगे
गोलियां और अंधकार दोनों ही है
लेकिन पौ फटने का दारोमदार
तुम पर ही है
ओ चिड़िया
चहचहाओ
फूल के लिये
नन्हे बच्चों के लिये
गेंहूँ और जौ की बालियों के लिये
उस सब के लिये
जो देता है जिंदगी को अर्थ
जो देता है जिंदगी को रंग
उस सिन्दूरी नन्हे सूरज के लिये
जो चाहो तो हाथों में भर लो
पर जो कारण है पौ फटने का
चहचहाओ उस नन्हे सूरज के लिये
5 comments:
bahut sundar bhaav
वाह, अति सुंदर....
विलुप्त होती चिरैया पर चल रहा,
गहन अध्यन, चिंतन मनन !
आज आँगन में हमारे नहीं आती चिरैया,
करे आत्म-मंथन !!
Vah bahut shaandar kavita !
"जानता हूँ आदमी आजकल
धान का कटोरा नहीं
बन्दूक की गोली लिये
ढूँढता है तुम्हे
पर चिडिया तुम जिन्दा रहोगी
चाहे कबूतर बन कर
चाहे फाख्ता"
Badhai
बहुत बढ़िया...अश्वनी जी.....
"ओ चिड़िया
चहचहाओ
फूल के लिये
नन्हे बच्चों के लिये
गेंहूँ और जौ की बालियों के लिये
उस सब के लिये
जो देता है जिंदगी को अर्थ
जो देता है जिंदगी को रंग"
संवेदना लिए बहुत ही सुंदर कविता ! वाह अश्विनी जी
Post a Comment