मायने जिंदगी के बदलते रहे
फैसले कुछ जरूरी थे ,टलते रहे
हाथ की ये लकीरें जो चुभने लगी
हाथ ही हम सिरे से बदलते रहे
सरसराते रहे ,कुलबुलाते रहे
गो कि उड़ ना सके बस उछलते रहे
हम गुबारों को हासिल समझते रहे
कारवां फासले से निकलते रहे
जो उठे सर सभी वो कलम हो गए
चींटियों के मगर पर निकलते रहे
आँख काँटों की फसलें उगाती रही
कुछ दुपट्टे लजाते ,सँभलते रहे
2 comments:
जो उठे सर सभी वो कलम हो गए
चींटियों के मगर पर निकलते रहे
waah-waa ! bahut khoob !!
बहुत खूब!
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