आंधी थी जो कर गयी,आँगन आँगन रेत
आई थी तो जायेगी,कहाँ रेत को हेत
रात चांदनी दूर तक टीलों का संसार
अळगोजे*की तान में बिखरा केवल प्यार
हडकम्पी जाड़ा पड़े,चाहे बरसे आग
सहज सहेजे मानखा माने सब को भाग
सतरंगी है ओढ़नी,पचरंगी है पाग
जीवन चाहे रेत हो मनवा खेले फाग
सुबह हुई कुछ और था,सांझ हुई कुछ और
आदम की नीयत हुआ,इन टीलों का तौर
1 comment:
bahut khoob ..
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