एक ग़ज़ल
ख़त आता था ख़त जाता था
बहुत अनकही कह जाता था
बूढ़े बरगद की छाया में
पूरा कुनबा रह जाता था
झगडा मनमुटाव ताने सब
इक आंसू में बह जाता था
कहे सुने को कौन पालता
जो कहना हो कह जाता था
तन की मन की सब बीमारी
माँ का आँचल सह जाता था
कई दिनों का बोल अबोला
मुस्काते ही ढह जाता था
लाख अभावों के जीवन में
भाव सदा ही बच जाता था
No comments:
Post a Comment