ashvaghosh
Saturday, February 19, 2011
दो छोटी कवितायेँ
एक
और तभी होता है ये आभास
गिन गिन कर लेते है
एक एक
श्वांस
तोड़ कर पिंजड़ा
उड़ता है एक पंछी
और छाया मंडराती है
यहीं आसपास
दो
एक कोई
माघ की रात में गला
जेठ की घाम में जला
उसने हर बार
घर दिया
उसे
खलिहान ही मिला
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