Monday, March 7, 2011

क्या जाने

क्या जाने

अब मेरे ज़ब्र के है क्या माने
तू कहे क्या,करे ,ये क्या जाने

आँख को मूंदना अदा गोया
पाँव छाती पे,कब हो,क्या जाने

फैलना इक नशा शहर का है
गाँव कब खो गया ये क्या जाने

मंद कंदील तुम ने बाले तो
रोशनी हो न हो ये क्या जाने

हम मुसाफिर है तो चलेंगे ही
राहे मंजिल है क्या,ये क्या जाने

कलम गुस्ताख कुछ भी कहती है
कलम हो सर,ये कब,ये क्या जाने

No comments: