Thursday, March 31, 2011

मूर्ख दिवस पर

हे दुनिया के
परम बुद्धिमान लोगों
तुम्हारे सारे बहस-मुबाहसों
चिंताओं,सरोकारों
प्रतिबधताओं,पक्षधर्ताओं
का केंद्र मैं ही हूँ
किन्तु
मैं तो मूर्ख ही हूँ अभी

कितने पन्ने रंग डाले तुम ने
लाल,नारंगी स्याहियों से
फिर क्यों होता है
स्याहियों का रंग
तुम्हारे चेहरों पर नज़र आता है

कोर्पोरेट योद्धाओं से तुम
लड़ रहे होते हो
अपने अपने ब्रांड के लिये

कितने बड़े हो जाते है
तुम्हारी नाकों के दायरे
हवा में चला घूँसा भी
लगता है तुम्हारी नाक पे

हे परम बुद्धिमानों
एक इच्छा है इस मूर्ख की
तुम्हारी नाक में तिनका कर
तुम्हारी छींक की
आकाशी गर्जना सुनने की
क्या तुम मुझे
इस मूर्खता की अनुमति दोगे
मैं जानता हूँ
तुम हंस रहे हो
मेरी मूर्खता पर
मेरे भोलेपन पर
लाड आता है तुम्हे
तुम्हारी प्रतिबधता की प्रत्यंचा
और तन जाती है

परम बुद्धिमानों
मैं वज्रमूर्ख खुश हूँ
अपनी मूर्खता में
कालिदास और लाओत्से की तरह

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