आसमां के हाथ मैले हो गये
ये महल कैसे तबेले हो गये
जो खनकते थे कभी कलदार से
अब सरे बाज़ार धेले हो गये
घूमती थी बग्घियाँ किस शान से
आजकल सड़कों पे ठेले हो गये
इस शहर में कौन बोलेगा भला
लोग ख़ामोशी के चेले हो गये
देखिये तो छक्के पंजे जब मिले
कल के नहले आज दहले हो गये
अपनी खुद्दारी नज़रिया औ हुकूक
जान को लाखों झमेले हो गये
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