Tuesday, March 22, 2011

झमेले हो गए

आसमां के हाथ मैले हो गये
ये महल कैसे तबेले हो गये

जो खनकते थे कभी कलदार से
अब सरे बाज़ार धेले हो गये

घूमती थी बग्घियाँ किस शान से
आजकल सड़कों पे ठेले हो गये

इस शहर में कौन बोलेगा भला
लोग ख़ामोशी के चेले हो गये

देखिये तो छक्के पंजे जब मिले
कल के नहले आज दहले हो गये

अपनी खुद्दारी नज़रिया औ हुकूक
जान को लाखों झमेले हो गये

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