क्यों गढ़े गये है बड़े बड़े शब्द
मेरे छोटे छोटे सुखों के लिये
शब्द वीरों की पूरी सेना
लड़ रही है मेरी रोटी के लिये
मैं तो रोटी का मतलब
इतना ही जानता हूँ कि माँ बना देती है
गरम गरम रोटियां और मैं खा लेता हूँ
मुझे नहीं पता रोटी के लिये
युद्ध होता है या गीत गाये जाते है
मेरे हिसाब से तो पसीना बहता है
कोई मेरे लिये लाठियां भांज रहा है
कोई बहुत दयालु हो कर आंसू बहा रहा है
पसीना कोई नहीं बहाता
मुझे हर बार बना दिया जाता है
अजायबघर में रखा कोई बुत
या चौराहे पर टंगा कोई इश्तिहार
झंडों,नारों,बैनरों,पोस्टरों के नीचे
मेरी पत्नी के लिये लायी चूड़ियाँ दब गयी है
रोटी के झंडाबरदारों को क्या बताऊँ
भाई बीवी से प्यार करना तो मुझे आता ही है
मैं पोस्टर नहीं हूँ
आदमी हूँ ,चाहता हूँ रोटी
थोड़े प्यार के साथ
No comments:
Post a Comment